नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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तुम्हारी पाती
मन कुछ का कुछ और हो गया, पाई पाती आज तुम्हारी !
चाँद उगा, कोई उन्मन है,
और किसी के पुलक नयन हैं;
सौ-सौ अर्थ लगाती दुनिया --
यह तो अपना अपना मन है;
बोलो, मैं क्या अर्थ लगाऊँ ?
समझूँ, औरों को समझाऊँ ?
पुलक उदासी घेरे बैठी छवि मुसकाती आज तुम्हारी !
जब भी संयम घट भर आता,
नेह निगोड़ा ढुरका जाता;
मेरी व्यथा-कथा अनहोनी --
सम्बल दुख-कातर कर जाता;
सुन कर यह पहले मुसकाए,
फिर आनत लोचन भर लाए,
जाने क्यों यह बात नहीं मुझ को बिसराती आज तुम्हारी !
शाश्वत प्यास बुझाता जल है ?
या कि नयन का ही मृगछल है ?
ज्ञान-मोह की सीमा-रेखा --
अपनी ही तृष्णा पागल है;
चीर आवरण झाँक चला था,
छाया, माया आँक चला था,
अगर कहीं प्रिय, याद न मुझ को फिर आ जाती आज तुम्हारी !
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