नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
कर्म
सुकरात एक बहुत बड़े महात्मा थे। एक बार एक व्यक्ति उनके पास आ कर कहने लगा, "महात्मन्! बड़ी विकट स्थिति में पड़ गया हूँ। मेरा परिवार काफी बड़ा है, सब खाने-पीने वाले हैं। आमदनीलाने वाला कोई नहीं। मेरी आमदनी बहुत कम है। जीवन-निर्वाह करना कठिन हो गया है। कृपया निवारण का कोई उपाय बताइए।"
सुकरात ने प्रश्न किया, "घर के अन्य लोग क्या करते हैं?"
"वे कहते हैं क्या हम किसीके नौकर हैं जो काम करें।"
सुकरात कहने लगे, "तब तो नौकर श्रेष्ठ कहे जाएँगे। वे कम-से-कम काम करके तो खाते हैं। घर के सब व्यक्तियों को, बच्चों को भी, कोई न कोई काम अवश्य करना चाहिए। उस काम से जो आय होगी, वह सब के व्यय का भार वहन करने के लिए पर्याप्त होगी।
वह व्यक्ति उपदेश सुन कर चला गया और उसने घरवालों से सुकरात की कही बात दोहरा दी। कुछ दिनों बाद फिर वह व्यक्ति सुकरात के चरणों में बैठ कर कहने लगा, "महात्मन्! आपकी कृपा से अब मेरा घर ठीक प्रकार से चलने लगा है। घर के सब प्राणी, बच्चे और स्त्रियाँ भी, किसी न किसी काम में लगे रहते हैं। अच्छी आय हो जाती है, सब कार्य भली प्रकार चल जाते हैं। किन्तु अब एक नई उलझन उत्पन्न हो गयी है। सब लोग स्वयं को तो खूब कमाऊ समझतेहैंऔर मुझे निखट्टू कहते हैं।"
महात्मा सुकरात ने उसको एक कहानी सुनाई और उस कहानी को घरवालों को सुनाने के लिए कह दिया। कहानी इस प्रकार थी :
भेड़ों ने अपने स्वामी से कहा, "हम तुम्हें ऊन देती हैं, बच्चे देती हैं, दूध देती हैं। इतना देने पर भी तुम हमें कुछ नहीं देते। जंगल में घूम फिरकर हम अपना पेट पालती हैं और तुम्हारा यह कुत्ता तुम्हें कुछ नहीं देता, फिर भी तुम अपने भोजनमें से इसको हिस्सा देते हो। क्या यह अन्याय नहीं है?"
कुत्ता इन बातों को सुन रहा था। उसने कहा, "यह तो मालिक का सच्चा न्याय का आचरण है। मैं तुम्हारी रक्षा करता हूँ, नहीं तो तुम्हें भेड़िया खा जाय या चोर चुरा ले जाय। यदि मैं तुम्हारी रक्षा के लिए हमेशा सावधान न रहूँ तो तुम्हारा चरना तो क्या चलना-फिरना भी बन्द हो जाय।"
भेड़ों की समझ में बात आ गयी।
उस व्यक्ति ने जब अपने घर पर इस कहानी को सुनाया तो उन्होंने उसको निखट्टू कहना छोड़ दिया।
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