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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

भीख नहीं सीख

कलकत्ता निवासी ईश्वरचन्द्र विद्यासागर केवल परोपकारी, सेवाभावी रूप में ही नहीं प्रसिद्ध थे बल्कि वह महादानी भी थे। अवसर पड़ने पर अपना सर्वस्व लुटाने में वह कभी पीछे नहीं रहे।

एक बार वह मार्ग में जा रहे थे कि एक भिखारी बालक ने उनके आगे हाथ फैलाते हुए याचना के स्वर में कहा, "बाबा! एक पैसा दे दो।"

बाबा ने देखा वह नन्हा सा प्यारा बालक था। उन्होंने उससे पूछा. "बालक! यदि मैं एक पैसे की बजाय तुम्हें एक रुपया दे दूँ तो तुम क्या करोगे?"

रुपये की बात सुन कर बालक का मुख प्रसन्नता से खिल उठा और बोला, "बाबा! फिर तो मैं भीख माँगना ही छोड दंगा।"

विद्यासागर ने आगे कुछ नहीं पूछा और उसके हाथ पर एक रुपया रख कर आगे बढ़ गये। .

बहुत वर्षों बाद एक बार विद्यासागर फिर उसी मार्ग से जा रहे थे। सामने से एक व्यक्ति धोती-कुरता पहने हुए आया और उसने विद्यासागर के चरण-स्पर्श किये। विद्यासागर सहसा ठिठक गये। उसकी ओर देखने लगे और पहचानने कीकोशिश करने लगे, किन्तु पहचान नहीं पाये।

युवक ने वहीं एक दुकान की ओर संकेत करते हुए कहा, "बाबा! यह दुकान आपकी है।"

 "मेरी यहाँ तो क्या कलकत्ते में भी कोई दुकान नहीं है।"

"बाबा! मैं बताता हूँ। बहुत वर्ष पहले जब मैं छोटा था तो भिक्षा माँगा करता था। एक दिन इसी सड़क पर आपके दर्शन हो गये। मैंने आपसे एक पैसा माँगा। आपने एक पैसा देने की जगह एक रुपया मुझे दिया और आप चले गये।

"उस दिन आपने यह मन्त्र सिखाया था कि मनुष्य को अपनी आजीविका खुद अर्जित करनी चाहिए, भीख माँगना ठीक नहीं। मैंने आजीविका के बारे सें विचार किया और उस रुपये के कुछ फल खरीदे, कुछ आय हुई। दूसरे दिन और अधिक फल खरीदे, फिर आय बढ़ी - इस प्रकार आय बढ़ाते-बढ़ाते यह दुकान खरीद ली और आज इसमें व्यवसाय करता हूँ।"

युवक की बात सुनकर विद्यासागर को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने युवक की पीठ थपथपाई और उसे अधिक उन्नति करने का आशीर्वाद देते हुए कहा, "बेटा! जो लोग तुम्हारी तरह शिक्षा ग्रहण करते हैं, सफलता उनके चरण चूमती है। ईश्वर तुम्हारी उन्नति में सहायक हो।"

यह कह कर वह आगे बढ़ गये।

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