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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

जाति-भेद

जब अहमदशाह अब्दाली ने मराठों पर आक्रमण किया तो मराठा सेना का नायक सदाशिवराव भाऊ अपनी सेना लेकर उसके सामने मैदान में उतरा हुआ था। भारत को पददलित करने वाले अब्दाली से उसकी सीधी मुठभेड़ थी। अब्दाली की सेना मराठों के आगे अधिक समय तक टिक नहीं पाई। अब्दाली यह देखकर आश्चर्यचकित हो रहा था। उसकी सेना संख्या बल में मराठों से कहीं अधिक थी, फिर भी उसे अपनी हारसामने दिखाई दे रही थी। वह देख रहा था कि शाम होते ही उसकी सेना शिविर की ओर दौड़ी जा रही है।

दूसरी तरफ उसने देखा कि मराठों के शिविरों की ओर भी कई जगहों पर थोड़ा-थोड़ा धुआँ-सा उठता दिखाई दे रहा था। अब्दाली असमंजस में पड़ गया कि यह धुआँ क्यों निकल रहा है? जगह-जगह पर इस आग का क्या मतलब हो सकता है मराठों का?

अब्दाली ने अपने गुप्तचरों को बुलाया और आदेश दिया कि वे मराठा शिविर में जाकर पता करें कि वहाँ स्थान-स्थान पर आग क्यों जलाई जा रही है। इसमें उनका क्या उद्देश्य है? क्या यह आक्रमण अथवा प्रतिरोध की कोई चाल तो नहीं है? मराठा सैनिकरात में धोखा तो नहीं देने वाले हैं ।

गुप्तचर अपने काम पर गये और कुछ देर बाद ही लौट कर आकर उन्होंने बताया कि मराठा सैनिकों ने स्थान-स्थान पर अपने चूल्हे बनाये हुए हैं और वे अपना रात का भोजन तैयार कर रहे हैं, इसलिए यह स्थान-स्थान पर आग दिखाई दे रही है। पता चला है कि उन लोगों में अनेक वर्ग हैं जिनमें कुछ ऐसे भी हैं जो एक चूल्हे में बना खाना मिलकर नहीं खा सकते। यह भी पता चला कि मराठों में परस्पर छुआछूत की भावना बड़ी प्रबल है। एक-दूसरे के हाथ का बना खाना भी नहीं खा सकते। अतः सबका अपना-अपना भोजन इन चूल्हों में बनाया जा रहा है।

अब्दाली सोचने लगा, जो लोग एक साथ मिल-बैठकर खा नहीं सकते, वे एकजुट होकर लड़ाई किस प्रकार लड़ सकते हैं? उसने अपने सैनिकों को तुरन्त आक्रमण करने का आदेश दिया।

इस आकस्मिक आक्रमण से मराठा सैनिक हतप्रभ रह गये। परिणाम यह हुआ कि जो मराठा सेना कल के युद्ध में निश्चय ही विजय प्राप्त करने वाली थी और अब्दाली की सेना पलायन करने वाली थी, वह मराठों की सेना पराजित हो गयी और अब्दाली की सेना की विजय हुई।  

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