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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

पाइथागोरस का बचपन

यूनान में पाइथागोरस नाम के एक महान् दार्शनिक हुए हैं। पाइथागोरस एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे। बचपन में मेहनत-मजदूरी किया करते थे, किसी तरह परिवार चल रहा था। माता-पिता पहले ही चल बसे थे अतः पढ़ाई-लिखाई की कोई व्यवस्था नहींथी, किसी तरह जीवन व्यतीत कर रहेथे।

पाइथागोरस यूनान के एवदेस नगर के एक कोने में रहा करते थे। उस समय नगरों के नजदीक ही जंगल भी हुआ करते थे। बचपन में वह प्रातःकाल उठ कर जंगल जाते और सूखी लकड़ियाँ बीन कर बाजार में लाकर बेच दिया करते थे।

एक बार वे लकड़ी बेचने के लिए बाजार में बैठे थे, साथ में और बालक भी अपनी लकड़ियाँ बेचने के लिए गट्ठर बना कर बैठे थे। पाइथागोरसका गट्ठर बड़े करीने से बना हुआ था। एक बुजुर्ग व्यक्ति उधर से निकल रहा था, उसने लकड़ी के गट्ठर देखे। एक गट्ठर बड़े करीने से बँधा हुआ देखा तो पास आ गया और पूछा, "यह गट्ठर किसने बाँधा है?"

पाइथागोरस ने कहा, "मैंने। क्या आपको पसन्द है?"

आगन्तुक ने पूछा, "क्या तुम इस गट्ठर को बिखेर कर दोबारा फिर इसी प्रकार बाँध सकते हो?"

"हाँ, साहब, बाँध सकता हूँ।"

"अच्छा, पहले खोलो, बिखेरो और फिर बाँधो।"

पाइथागोरस ने गट्ठर खोला, बिखेरा फिर बाँधने लगा। आगन्तुक उसके बाँधने की कला को देख रहा था। पाइथागोरस ने बड़ी लगनसे गट्ठर बाँधा था। जब तक गट्ठर ठीक से बँध नहीं गया पाइथागोरस की तन्मयता भंग नहीं हुई, उस व्यक्ति ने यह विशेष बात देखी।

उसकी तन्मयता को देख कर वह व्यक्ति प्रसन्न हो गया और पूछा, "क्या तुम पढ़ना चाहते हो?"

"जी हाँ। यदि अवसर मिले तोचाहता हूँ,, इन लकड़ियों को बेचने में तो अवसर मिलता नहीं।"

आगन्तुक ने कहा, "मेरे साथ चलो और गट्ठर भी ले चलो।" पाइथागोरस ने गट्ठर उठाया और उनके साथ चल दिया। वह उसे अपने घर ले गये, अपने पासरखा और उसकी पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था कर दी। पढ़-लिख कर जब वह व्यक्तिबड़ा हुआ तो यूनान का महान् दार्शनिक बन चुका था और उसको अपने साथ लाने वाले व्यक्ति थे दूसरे महान् दार्शनिक डेमोक्रीट्स।  

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