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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

निस्स्वार्थता

फारस का एक बादशाह अपनी न्यायप्रियता के लिए बड़ा प्रसिद्ध रहा है।कहते हैं कि वो वैसा ही दानी भी था।

बादशाह एक दिन अपने मन्त्रियों के साथ बाहर घूमने के लिएनिकला। वह घूमते हुए एक बाग के पास से जा रहे थे कि बादशाह ने देखा कि बागमें एक बहुत बूढ़ा माली काम पर लगा हुआ है। विशेष ध्यान देने पर उसने यह भी देखा कि वह माली उस बाग में एक अच्छे स्थान पर अखरोट का पौधा रोप रहा है।

घूमना छोड़कर बादशाह बाग मेंचला गया। उसने माली से पूछा,"माली! तुमयहाँ नौकर हों या कि यह बागतुम्हारा ही है?"

"मैं नौकर नहीं हूँ, यह बाग मेरे बाप-दादा से चला आ रहा मेरा अपना ही बागहै।"

बादशाहबोला,"मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारी आयु बहुत हो गई है और जो पौधा तुम लगा रहे हो वह अखरोट का पौधा है। लोग कहते हैं कि अखरोट का पौधा तो बीस वर्ष बाद फल देने लायक होता है। क्या तुम समझते हो कि इसकेफल देने लायक होने तक तुम इसके फल खाने के लिए जीवित रहोगे? तुम तो काफी वृद्ध दिखाई देते हो?"

बूढ़े माली ने बादशाह की बात ध्यान से सुनी और उत्तर देतेहुए कहा, "मैं अपने जीवन में दूसरों के लगाये हुए पेड़ों के ही फल खातारहा हूँ। अपने हाथ के लगे पेड़ों के बहुत कम फल खाए हैं। इसलिए मुझे चाहिए किमैं भी दूसरों के लिए पेड़ लगाऊँ, ताकि समय पर फल देकर वे पेड़ मेरी तरह अन्य लोगों को भी अपने फलों से तृप्तकरें। यही विचार करके मैं यह पेड़लगा रहा हैं। अपने ही फल खाने की आशा से पेड़ लगाना तो स्वार्थपरता कहलाएगी।"

बादशाह माली का उत्तर सुन कर प्रसन्न हो गया। उसके मन में माली के प्रति आदर आ गया। उसी समय उसने पुरस्कार में उस माली को दो अशर्फियाँ भेंट कर दीं।  

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