नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
जीवन-मृत्यु
कहा जाता है कि बगदाद में एक ऐसा खलीफा था जो राजकीय खजाने से अपने और अपने परिवार के खर्च के लिए रोज मात्र एक रुपया लिया करता था। उसने नियम बना लिया था कि वो इससे अधिक कभी नहीं लेगा। उस एक रुपये में ही वह अपने पूरे परिवार का भरण पोषण करता था।
जब ईद का त्यौहार आया तो नगर-भर के लोगों में उल्लास दिखाई देने लगा। लोग नये-नये वस्त्रों की बातें करने लगे, मिठाइयाँ खाने-खिलाने की बातें होने लगीं। यह देख कर खलीफा के बच्चे भी खाने-पीने और पहनने के लिए जिद करने लगे।
खलीफा की पत्नी अपने पति के स्वभाव को जानती थी। उसने बच्चों को अपनी विवशता के विषय में खूब समझाने की कोशिश की,किन्तु बच्चे तो बच्चे ही होते हैं। उनकी समझ में यह सब बातें नहीं आती हैं। पत्नी विवश हो गयी।
उसको एक तरकीब सूझी। बहुत साहस बटोर कर उसने खलीफा को समझाने का यत्न करते हुए एक दिन कहा, "सुनिये जी!"
"हाँ, बोलिये।"
"क्यों न आज आप तीन दिन के तीन रुपये पेशगी ले आयें। उससे बच्चों के कपड़ों तथा मिठाइयों का प्रबन्ध हो जायेगा। बच्चे भी खुश हो जायेंगे और आपके नियम में भी बाधा नहीं पड़ेगी।"
खलीफा की समझ में यह बात कहाँ से समाती। पत्नी से बोले, "यदि तुम अल्लाह के पास जाकर मेरे जीवन का तीन दिन का पट्टा लिखवा कर ले आओ तो मैं उसके आधार पर खजाने से तीन दिन के रुपये पेशगी ले लूँगा।"
पत्नी निरुत्तर हो गयी।
सभी जानते हैं कि कोई किसी के जीवन की तीन दिन तो क्या तीन क्षण की गारंटी भी नहीं ले सकता। मनुष्य को चाहिए कि वह आज का कार्य कल पर न छोड़े, आलसी न बने। जो भी कार्य हो उसको अगर आरम्भ किया है तो पूरा करके ही छोड़ना चाहिए, कल का क्या भरोसा।
खलीफा के बच्चों की ईद वैसे ही बीती जैसी उस स्थिति में बीत सकती थी।
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