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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सृष्टि के नियम

एक बार एक सूखी झाड़ी में कुछ खरगोश एकत्रित हुए। यह गरमी के दिन थे। खेतों में अन्न न होने से सब खाली पड़े थे। लोग फुरसत में थे वे सबेरे-शाम जब घूमने निकलते तो उनके साथ कुत्ते भी होते थे, जो खरगोशों को तंग किया करते थे। मैदान की झाड़ियाँ भी गरमी के कारण सूख गयीथीं। कुत्ते जब दौड़ाते तो खरगोशों को बचने और छुपने के के लिए स्थान ही नहीं मिलते थे। बड़ी कठिनाई से वे बच पाते थे। खरगोश समाज बड़ा बेचैन हो गया था।

एक दिन एक खरगोश बोला, "ब्रह्माजी ने हमारी जाति के साथ बड़ा अन्याय किया है। हमको बहुत छोटा और दुर्बल बनाया है। ब्रह्माजी ने न तो हमें हिरन जैसे सींग दिये और न बिल्ली जैसे तेज पंजे दिये हैं। शत्रुओंसे बचने का हमारे पासकोई उपाय नहीं है। सबके सामने से हमें भागना पड़ताहै शायदसष्टिकर्ता ने सारी विपत्ति हम लोगों के सिर पर ही डाल दी है।"

यह सुन कर दूसरा खरगोश बोला, "मैं तो अब इस दुःख और आशंका भरे जीवन से घबरा गया हूँ। मैंने तालाब में डूब कर मर जाने का निश्चय कियाहै।"

तभी तीसरा खरगोश कहने लगा, "मैं भी मर जाना चाहता हूँ। मुझसेभी अब और दुःख सहा नहीं जाता। मैं तो अभी तालाब में कूदने जा रहा हूँ।"

"हम सब तुम्हारे साथ चलते हैं। हम सब हमेशा साथ रहे हैं तो साथ ही मरेंगे भी।"सब खरगोश एक स्वर से बोल पड़ेऔर सब एक साथ तालाब की ओरचल पड़े।

खरगोशों के तालाब पर पहुँचने से पहले ही तालाब से निकल कर बहुत से मेंढक तालाब के किनारे बैठे हुए थे। उनको जब खरगोशों के आने की आहट मिली तो वे पानी में कूद पड़े। इस प्रकार मेंढकों को पानी में कूदते हुए देख कर खरगोश वहीं कुछ दूरी पर रुक गये।

एक खरगोश बोला, "भाइयों! प्राण देने की आवश्यकता नहीं है। आओ, लौट चलें।"

"क्यों?" सब खरगोश एक साथ बोल पड़े, तो वह खरगोश बोला, "जब ब्रह्मा जी की सृष्टि में हम से भी छोटे और हमसे भी डरने वाले जीव रहते और जीते हैं, तो हम जीवन से क्यों निराश हों?"

सब खरगोशों ने उस पर गम्भीरता से विचार किया तो पाया कि उसकी बात में बल था। वे बोले, "हाँ, ये ठीक कहते हैं, चलो लौट चलें।"

सारे खरगोशों ने आत्महत्या का विचार छोड़ दिया और वापस लौट गये। अपने ऊपर आयी विपत्ति को दूर करने के लिए इस प्रकार की तरकीब हमें कष्ट से उबरने में सहायक होती है।  

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