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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

आतिथ्य-निर्वाह

जिस समय औरंगजेब की सारी चेष्टाओं को विफल कर वीर दुर्गादास राठौर कुमार अजीत सिंह की रक्षा में तत्पर थे, औरंगजेब ने अपने पुत्र आजम और अकबर की अध्यक्षता में मेवाड़ और मारवाड़ को जीतने के लिए विशाल सेना भेजी। अकबर दुर्गादास के शिष्ट व्यवहार और सौजन्य से प्रभावित होकर उनसे मिल गया।

औरंगजेब को जब यह पता चला तो वह हाथ धोकर जब दोनों के पीछे पड़ गयातो अकबर ईरान चला गया। औरंगजेब को जब यह पता चला कि अकबर का पुत्र बुलन्दअख्तर और पुत्री सफायतुन्निशा जोधपुर में ही हैं तो उन्हें दिल्ली लाने के लिए उसने ईश्वरदास नागर को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा। दुर्गादास ने दोनों को इस बात पर लौटाना स्वीकार कर लिया कि औरंगजेब जोधपुर के राजसिंहासन पर जसवन्त सिंह के पुत्र अजीत सिंह का आधिपत्य स्वीकार कर ले। वे सफायतुन्निशा को साथ लेकर दरबार में उपस्थित हुए, पर बुलन्दअख्तर को जोधपुर में ही रखा जिससे औरंगजेब उन्हें शिवाजी महाराज की तरह धोखा न दे सके।

सफायतुन्निशा से औरंगजेब ने कहाकि वह विधर्मी के संरक्षण में रही है, इसलिए उसे अपने धर्म का ज्ञान नहीं है, उसे चाहिए कि वह तुरन्त कुरान के पाठ में लग जाए।

वह बोली, "अब्बा! यह आप क्या कह रहे हैं? दुर्गादास राठौर ने मेरा न केवल पुत्री की तरह लालन-पालन किया है, उन्होंने मुझे कुरान का पाठ पढ़ाने के लिए एक मुसलमान महिला भी लगा दी थी। मुझेपूरा कुरान कण्ठस्थ है।"

"वाह! क्या बढ़िया बात सुनाई तुमने। इन हिन्दुओं की धार्मिक सहिष्णुता तो इन्हीं की मौलिक सम्पत्ति है। आतिथ्य का मर्म कोई इनसे सीखे।"

तभी दुर्गादास ने शिविर में प्रवेश किया और औरंगजेब की बात सुन कर कहा, "वह तो हमारा कर्तव्य था बादशाह! समस्त प्राणिमात्र परमात्मा की सन्तान हैं। सारे धर्मों में परमात्मा की ही सत्ता, सत्य की महिमा का ही वर्णन है। हमारा वैरदिल्ली के राजसिंहासन पर विराजमान अन्यायी बादशाह के प्रति है। औरंगजेब और उसकी पौत्री से हमारा कोई द्वेष नहीं है।"

"आप देवता हैं दुर्गादास ! अतिथि का सम्मान करने वाला परमात्मा का प्यारा होता है।"

औरंगजेब ने वीर राठौर को सम्मानपूर्वक स्थान पर आसन प्रदान किया। अजीतसिंह जोधपुर के महाराज मान लिए गये। दुर्गादास ने आदर से बुलन्द अख्तर को दिल्ली भेज दिया।  

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