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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :9781613016817

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सदाचार का प्रभाव

एक बार एक सँकरे रास्ते पर काशीराज और कोसलराज दोनों आमने-सामने आ गये। स्थिति यह थी कि जब तक एक रथ रास्ते से थोड़ा हटे नहीं तब तक दूसरा रथ वहाँ से निकल नहीं सकता था। इस स्थिति में काशीराज के सारथी ने कहा, "मेरे रथ पर महाराज काशीराज विराजमान हैं, तुम रास्ता दो, ताकि हम निकल जाएँ।"

"नहीं, नहीं। तुम रास्ता छोड़कर हट जाओ, तुम्हें मेरे रथ को रास्ता देना चाहिएक्योंकि मेरे रथ पर कोसलराज विराजमान हैं।"दूसरे सारथी ने कहा।

किसी ने कहा, "जो अवस्था में छोटा हो, वह बड़े को जाने दे।"

दोनों सारथियों को यह बात पसन्द आ गयी। फिर भी कोई हल नहीं निकल सका क्योंकि दोनों राजाओं की अवस्था समान थी।

फिर एक ने कहा, "जो बड़ा राजा हो, उसे प्रथम निकलने का अधिकार होना चाहिए।"

दोनों सारथियों ने इसे उचित समझा। पर यह भी कोई हल न बन सका। क्योंकि दोनों राजाओं का राज्य एक समान अर्थात् तीन सौ योजन था।

फिर किसी ने कहा, "जो सदाचारी है उसे प्रथम निकलने का अधिकार होना चाहिए।"

इस पर कोसलराज के सारथी ने बतलाया, "मेरे राजा भले के साथ भला तथा शठ के साथ शठता का व्यवहार करते हैं। यह उनका महान् गुण है।"

काशीराज के सारथी ने कहा, "तब तो मेरा रथ ही निकलेगा, क्योंकि मेरे राजा सद्व्यवहार से दूसरों के दुर्गुणों को दूर करते हैं।"

इस पर कोसलराज ने स्वयं काशीराज को मार्ग दे दिया।

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