नई पुस्तकें >> सूक्ति प्रकाश सूक्ति प्रकाशडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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1000 सूक्तियों का अनुपम संग्रह
'मैं जानता हूँ' ऐसी अभिमान-वृत्ति ही ज्ञानामृत-भोजन में मक्खी है। वह मक्खी जिसने खा ली उसे ज्ञान भोजन कैसे मधुर लगेगा।
अपने अमल को सच्चा रखो और बदनामी की परवाह न करो। गंदगी मिट्टी की दिवाल से चिमट सकती है, पालिश किये हुए संगमरमर से नहीं।
जो विवेक के नियमों को तो सीख लेता है, परन्तु जीवन में उन्हें नहीं उतारता, वह ऐसे आदमी की तरह है जिसने अपने खेतों में मेहनत की, मगर बीज नहीं बोया।
किसी निश्चय पर पहुँचना ही विचार का उद्देश्य है; और जब किसी बात का निश्चय हो गया, तो उसको कार्यरूप में परिणत करने में देर करना भूल है।
ईश्वर कहता है कि चाहे मुझे छोड़ दे, पर मेरे कहे पर चलो।
दर्शनशास्त्र के दस ग्रन्थ लिखना आसान है, एक सिद्धान्त को अमल में लाना मुश्किल।
अगर चाहते हो कि मरते ही तुम भुला न दिये जाओ तो या तो पढ़ने लायक चीजें लिखो या लिखने लायक काम करो।
क्रियाकांड से, प्रजनन से, धन से नहीं, अमरत्व तो त्याग से प्राप्त होता है।
अगर अमीरों में न्याय होता और गरीबों में संतोष होता, तो दुनिया से भीख मांगने की प्रथा उठ गई होती।
अरण्यवास जंगली जीवन का दूसरा नाम है।
अल्पभाषी सर्वोत्तम मनुष्य है।
कम खाना और कम बोलना कभी नुकसान नहीं करते।
बड़ी उम्र चाहते हो तो कम खाना खाओ।
जिसके चित्त को अलबेली के कटाक्ष नहीं छेदते वह तीनों लोक जीतता है।
अवगुण नाव की पेंदी के छेद की तरह है जो छोटा हो या बड़ा, एक दिन उसे' डुबा देगा।
मुझे रास्ता मिलेगा, नहीं तो मैं बनाऊँगा।
अक्लमन्द आदमी को जितने अवसर मिलते हैं उनसे अधिक वह पैदा करता है।
कोई महान पुरुष अवसर की कमी की शिकायत नहीं करता।
बिना विचारे उतावली में कोई काम कभी न करना चाहिए। अविचार सब आपत्तियों का मूल है। विचार-पूर्वक कार्य करने वाले की मनोवांछित कामनाएँ स्वयं पूर्ण हो जाती हैं।
जिस तरह बुढ़ापा सुन्दरता का नाश कर देता है उसी तरह अविनय लक्ष्मी का नाश कर देता है।
अविश्वास धीमी आत्महत्या है।
जिसे संतोष नहीं है उसे बुद्धि नहीं है।
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