नई पुस्तकें >> समय 25 से 52 का समय 25 से 52 कादीपक मालवीय
|
0 5 पाठक हैं |
युवकों हेतु मार्गदर्शिका
2
देर ना करिए
दोस्तों इसके पिछले अध्याय में हमने देखा कि कैसे सपनों को सच करने के लिये सपना देखना भी जरूरी है। उसके बाद फिर बिल्कुल देर नहीं करना है। इस अध्याय में आपको गम्भीरता से समझने का प्रयास करना चाहिये क्योंकि इसके अन्तर्गत लेखक ने कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिसे पढ़कर आप अपने आज से बीते हुये कल की तुलना करने पर पायेंगे कि कल मैंने उस चीज में देर न की होती तो आज मेरी जगह कुछ और होती, परिणाम और बेहतर होता।
अब समय हो चला है उम्र के 25वें-26वें पड़ाव का जब आदमी कुछ करने की चाह को थाम लेता है और उसके मन में नित नये-नये विचार आते हैं। कई बार मंजिलों के रास्ते आते हैं। बस सही निश्चय कर के उसे एक रास्ता पकड़ना पड़ता है। इन दोनों के बीच में जो घड़ी होती है कुछ समय की जिसमें हमें सोचना-समझना होता है और एक तीव्र एक्शन लेना पड़ता है। ‘देर’ इस शब्द से दुनिया के अच्छे-अच्छे महान विचारकों ने, बड़ी हस्तियों ने, वैज्ञानिकों ने सदा परहेज किया है तथा कई साधु-संत तपस्वियों ने भी हमेशा ही इससे दूरी बनाई रखी है। अगर इसके सम्पर्क में आ गये तो ये वो रुकावट है जो अपने लक्ष्य और मंजिल के बीच में लम्बाई का काम करती है जिसमें अपना परिणाम निहित होता है। अतः देर से करोगे तो अच्छा परिणाम भी देर से ही मिलेगा।
जीवन की इस उम्र में जो लोग संघर्षशील हैं या जिनके पास पर्याप्त संसाधन हैं वो तो कुछ करने में बिल्कुल भी देर न करें क्योंकि ये प्रकृति, तुम्हारी जिन्दगी और ईश्वर तुम्हें बार-बार कोई मौका नहीं देगा। जो युवा-युवती अभी इस समय किसी विशेष नौकरी या डिग्री की पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें तो मैं सलाह देना चाहूँगा कि वो देर और आलस्य का दामन कभी न थामें क्योंकि कभी-कभी पूरी लगन के साथ पढ़ाई करने पर भी इच्छित परिणाम प्राप्त नहीं होता तो फिर यदि लेट-लतीफ़ी हो गई और पढ़ने में आपने देर कर दी तो फिर बहुत भारी मात्रा में निराशा का सामना करना पड़ सकता है।
चलिए इस अध्याय के अन्तर्गत अब बात करते हैं उस प्रश्न की जो यहाँ तक पढ़ते-पढ़ते आपके मन में उठा होगा या आगे उठ सकता है। कुछ बुद्धिजीवी इसमें ये तर्क निकाल सकते हैं कि कभी-कभी देर भी भली होती है या हमारे पूर्वज और सन्त कहते हैं कि उचित समय आने का इन्तज़ार करो। यहाँ इन दोनों तथ्यों के दरमियान फर्क की एक सूक्ष्म सी रेखा होती है हमें उसे भलीभांति पहचानना है। और सही समय पर सही कार्य करना है। सही समय पर सही बोलना है। परन्तु ये ‘उचित समय’ वाले तर्क का इस पुस्तक में कोई काम का नहीं है न ही आपके काम का है। क्योंकि ये पुस्तक मेहनत करने वाले संघर्षशील व्यक्तियों के बारे में है। जब तक आदमी मेहनत करता है, पसीना बहा के निरन्तर प्रयास करता रहता है। लक्ष्य को पाने के लिये दिन रात मेहनत करता रहता है। नौकरी पाने के लिये बहुत पढ़ाई करता है उसके इस जीवनकाल में तो ‘उचित समय’ का कोई स्थान नहीं रहना चाहिये बल्कि उसके लिये तो हर पल, हर क्षण कुछ नया करने का होता है, कुछ नयी योजना बनाने का होता है न कि देर करने का।
मेरे प्यारे उम्मीदार्थियों के जीवन में ऐसा कोई तर्क नहीं है तो मैं मेरी पुस्तक में क्यों जगह दूँ। एक अन्य छोटा सा तथ्य ये भी है कि जिस झूठ से किसी का घर बसता है तो वो झूठ झूठ नहीं, उसी तरह जहाँ देर करने से किसी की जान बचती है या किसी का भला होता है तो उन जगहों पर हम देर कर सकते हैं या सत्य को विजय दिलाने के लिये भी कभी-कभी देर करना जरूरी है। दोस्तों, तुम बस मेहनत करते रहो निरन्तर फिर तुम कह सकते हो कि परिणाम मुझे मिलेगा, भले देर से ही सही।
दोस्तों ! यदि आपने आपके निजी जीवन में, सामाजिक जीवन में, छात्र-जीवन में यदि देर कर दी तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं, इसको कुछ समानार्थी उदाहरण से समझते हैं जोकि काफ़ी रोमांचक है और खतरनाक भी। देर के इस टॉपिक में इस तथ्य पर भी प्रकाश डालना जरूरी है। क्योंकि हर चीज का हमें दुष्परिणाम मालूम होना चाहिये तभी सफलता के बीच कोई बाधा नहीं आयेगी।
-
यदि एक पायलट हवाई जहाज को आपातकाल में या कोई संकट की स्थिति में एमरजेंसी लैंडिग कराने में जरा सी भी देर कर दे, तो क्या होगा... परिणाम कितना घातक होगा...
-
एक रेलकर्मी यदि रेलगाड़ी को झण्डी दिखाने में, चाहे लाल हो या हरी, दिखाने में देर कर दे... परिणाम क्या होगा...।
-
किसी बड़े कार्य को करने के लिये शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। उसमें देरी करके यदि मुहूर्त से चूक जाते हैं तो परिणाम क्या होगा...।
-
यदि एक गन्दी मछली को तालाब से सही समय पर नहीं निकाला जाये तो परिणाम क्या होगा......।
दोस्तों ! उपरोक्त चार उदाहरणों से ही समझ लो कि ये देर नाम की बला के चपेट में आप अगर आ गये तो परिणाम किस प्रकार का हो सकता है।
मैं तो ये कहूँगा कि आप अगर बार-बार देर कर रहे हैं तो उसका कोई उचित कारण नहीं है। बल्कि आप सिर्फ़ दिखावा कर रहे हैं या मेहनत करने का आलस कर रहे हैं अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति, क्योंकि इसी क्रम में मुझे तो देर करने की कोई वाज़िब वजह समझ में नहीं आती।
दोस्तों ! देर के इस अध्याय में हम छात्र जीवन पर चर्चा कर चुके हैं। अब उम्र 25 साल से 52 साल के बीच में कई सारे ऐसे संघर्षरत व्यक्ति हैं जो कई सारी विधाओं में कई क्षेत्रों में लगातार मेहनत कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। उदाहरण के लिये - मान लीजिये आप शरीर से हष्ट-पुष्ट हैं और खेल जगत को अपनी उपलब्धियों का आधार बनाना चाहते हैं तो देर मत करिए, निकल पड़िए और कड़ा अभ्यास कीजिए। कोई मेडल या ट्राफी जीतने के लिये बार-बार प्रैक्टिस करनी पड़ती है। एक खिलाड़ी को चाहिए कि वह मन से भी चालाक और स्फूर्ति से भरा हो तभी कुछ ही सेकेंड में वह दुश्मन को परास्त कर सकता है। इतने जोखिम भरे काम में आपने जरा भी देर कर दी या आलस्य कर दिया तो कोई और आपको पीछे छोड़ता हुआ मेडल का हक़दार बन जायेगा।
अगर आपके पास वर्तमान में मानो कोई नौकरी नहीं है, सिर्फ़ है तो ज़िम्मेदारियों का बोझ, सर पे बीवी बच्चों की चिन्ता और थोड़ा पैसा इकट्ठा कर रखा था, तो फिर देर मत करिए। कोई छोटा ही दुकान-धन्धा शुरू कर दीजिए। बिना किसी शर्म के कोई भी काम प्रारम्भ कर दीजिए, चाहे तो थोड़ा उधार लेकर ही सही, धैर्य का दामन थामते हुये मेहनत कीजिए। सफलता आपको भी मिलेगी, प्रशंसा आपकी भी होगी। बस लगन से कर्म की एक-एक सीढ़ी चढ़ते रहे तो निश्चित ही बहुत जल्दी शिखर पर पहुँच जाओगे। आपकी शुरू में खोली गई ‘छोटी’ दूकान आपको भी बहुत छोटी लगने लगेगी।
आप स्कूली शिक्षा खत्म करने के उपरांत आपको भीतर से लगता है कि मुझमें लीडरशिप की क्षमता है या बोलने की कला है, भाषण शैली पर अच्छी पकड़ है तो आपको ऐसे समय में कतई देर नहीं करना चाहिए क्योंकि आप दुनिया का इतिहास उठाकर देख लो, सभी शीर्ष नेता और दिग्गज राजनीतिज्ञों ने आपकी उम्र से ही संगठन में रहना सीख लिया था और संगठन बनाना सीख लिया था। इस क्षेत्र में तो आपको कालेज समय से ही अभिरुचि लेनी पड़ेगी अन्यथा देरी हो जायेगी। भारत में कई युवा प्रतिदिन ये प्रतिभा होने के बाद भी पछताते हैं क्योंकि वो भी देर की चपेट में आ गये थे। कोई भी काम छोटा नहीं होता और आपकी किसी में रुचि है तो आपको किसी की भी परवाह नहीं करनी चाहिए बल्कि अपनी कला को पहचानते हुये इससे अपना लोहा पूरे देश में मनवाना चाहिए।
एक उदाहरण से समझते हैं जोकि एक सत्य घटना है। सूरत में एक कपड़ा और मील व्यापारी था जिसकी कई मिलें थीं और कपड़ा विदेशों में सप्लाई होता था। वहीं उसके पास एक साड़ियों का व्यापारी था जिसकी साड़ियाँ पूरे गुजरात में बिकती थीं। साड़ियों का व्यापारी दिन-रात अपने बिजनेस को कैसे बढ़ाये, ये कर्मठता से सोचता रहता था और मील व्यापारी का प्रतिद्वन्दी था क्योंकि उसे पता था कि उद्योग-धंधा चलाने के लिये पैसों के साथ-साथ मेहनत तथा व्यापार-नीति भी लगती है जिसमें वह निपुण था परन्तु उसका प्रतिद्वन्दी मील व्यापारी इस चीज से बिल्कुल अन्जान था। वो सिर्फ़ बिना मेहनत, बिना कोई योजना बनाये आराम से बैठ कर खाने का आदी था। उसकी इसी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर साड़ियों का व्यापारी दिन-रात मेहनत करने लगा और उसका सपना और गहरा होता गया उसे हराने का। इसके ठीक दो महीने बाद केन्द्र सरकार की योजना निकली छोटे उद्योग धंधे चलाने वालों के हित में। साड़ियों के व्यापारी ने बिना देर किये योजना का लाभ लिया और उसका ये धंधा अब इतना चल पड़ा कि उसने उसके प्रतिद्वन्दी की सब मीलें, जमीन सहित खरीद लीं और साड़ियों के क्षेत्र में अपना लोहा पूरे देश में मनवाया।
उपरोक्त उदाहरण भी बहुत अच्छी सीख देता है कि हमारी स्थिति कैसी भी हो बस कुछ करने में देर नहीं करनी चाहिए ।
¤ ¤
|