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समय 25 से 52 का

दीपक मालवीय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15416
आईएसबीएन :978-1-61301-664-0

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समय 25 से 52 का

1

सपने देखना सबका हक


प्यारे दोस्तों, 

उम्मीदार्थियों और विभिन्न विधाओं में संघर्ष कर रहे मित्रों ! 

प्रस्तुत पुस्तक ‘समय 25 से 52 का’ में लेखक प्रथम अध्याय सपनों के बारे में प्रस्तुत कर रहा है और अमूमन जिन्दगी की किताब में भी व्यक्ति कुछ करने से पहले सूरज की रौशनी में सपने देखता है और चाँद के उजाले में उसे आँखों में सजाकर सो जाता है। वैसे भी दुनिया की एक महान हस्ती ने कहा है कि ‘सपने उन्हीं के सच होते हैं जो सपने देखता है।’ जब एक अन्धा व्यक्ति भी सपने देखकर सच कर लेता है तो फिर हमने यदि सुन्दर दृष्टि से सपना नहीं देखा तो हम में और जानवरों में फर्क क्या ?

अब प्रकाश डालते हैं जीवन के उस ‘22 से 25 वें साल पर’ जब ईश्वर की दी हुई जिन्दगी हमें बहुत सारे रास्ते दिखाती है। स्कूली शिक्षा के उपरांत हमारे मन में मानो एक पेड़ सा उगता है। दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी उसकी विभिन्न शाखाएं हैं तथा उसका तना हमारा मन-मस्तिष्क है। जो हमें ये दिखाता है कि ये जीवन एक निश्चित समय के बाद हमें कई मौक़े फर्माता है। दोस्तों, इस अध्याय में लेखक का मात्र यह आशय है कि जब तक किसी कार्य को करने में या लक्ष्य को पाने के लिये जब तक मन की उत्कंठा में चिंगारी न जले या अवचेतन मन में जिज्ञासा न उठे तो उस लक्ष्य या मंजिल की कहीं न कहीं नींव कमजोर रह जायेगी। लेखक बस उस जिज्ञासा को ही सपनों का नाम दे रहा है। और आपने बिना किसी सोच-समझ के, लगन के अभाव में कोई काम कर भी डाला या किसी मंजिल की ओर चल पड़े तो निश्चित ही वह सार्थक रूप को प्रदान नहीं करेगा और न ही सही खुशी देगा। इसलिये मूर्छित अवस्था में कोई काम करने या किसी और के कहने से कोई लक्ष्य साधने की बजाए थोड़ी देर एकांत में बैठ कर मनन करो और खुली आँखों से सपना देखो, बन्द आँखों से चिन्तन करो और दूसरे दिन निकल पड़ो उसे साकार करने के लिये।

 मेरा मानना है कि सपने सफलता या किसी मंजिल के वो बीज होते हैं जो शुरुआती दौर में बोये जाते हैं। यदि सपना और अपना लक्ष्य दोनों परस्पर रूप से नहीं मिले तो इच्छित परिणाम नहीं प्राप्त होगा और समय की बर्बादी भी होगी। अतः एक उचित चाह भी जरूरी है किसी मंजिल को पाने के लिये। जब आप स्कूली शिक्षा के अंतिम दौर में होते हैं तो लगभग वही एक साल होता है आपके पास सपने सजाने का या अपना लक्ष्य निर्धारित करने का, जोकि पर्याप्त समय होता है एक जागरूक इंसान के लिये अन्यथा तो आपको कई साल भी लग सकते हैं ये निश्चय करने में कि मुझे क्या करना चाहिए, मुझमें प्रतिभा क्या है, मैं सबसे अलग कैसे हूँ ।

विदेश के एक महान विचारक ने कहा है कि भारत की हर गली- गली में एक टैलेन्ट होता है, पर हम जो भी करते हैं वो हमारे पूर्वज और हमारे ईश्वर पहले बता के जा चुके हैं। अर्थात हमारे देश में ऐसे कई हनुमान हैं जो अपनी शक्ति भूल चुके हैं। उन्हें पता ही नहीं कि मुझमें जो कला है, प्रतिभा है, मैं इसमें भी कुछ कर सकता हूँ। और जीवन में जिसे अपनी शक्ति याद आ जाती है वो या तो सामाजिक सोच में बंध जाता है या नकारात्मकता का शिकार हो जाता है। इस पुस्तक के अगले अध्यायों में यही बताया है कि कैसे दुनिया से अपना ध्यान हटाकर अपने अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त करें।

सपने देखने में ना ही मेहनत लगे ना ही मोल।
बस ख़ुशी से मगन होके अपनी धुन में डोल।

अर्थात खुली आँखों से सपना देखने में कोई मनाही नहीं है इस दुनिया में भी और तीनो लोकों में भी ना ही किसी राजा ने इस पर टैक्स लगाया था। यहाँ सपनों का मतलब अपने भविष्य के प्रति बनाई गई योजनाओं से भी हैजो हमारे सार्थक जीवन को एक नई दिशा प्रदान करके और सार्थक बनाता है।

ये दुनिया ऐसे कई उदाहरणों से भरी पड़ी है जो इस अध्याय को और अच्छी तरह से चरितार्थ कर सके। उनमें से किसी एक की बात करें तो जिसे आप पहले से ही जानते हैं.......... डॉ. अब्दुल कलाम जी। उन्होंने भी अपनी एक किताब में सपनों के बारे में कुछ कहा है कि जो कुछ पाने की लालसा में जिज्ञासु प्रवृत्ति का बनता है सफलता निश्चित ही उसके क़दमों को चूमती है। वो चाहे कोई भी क्षेत्र हो या कोई विधा हो। जैसे-पढ़ाई, अभिनय करना, खिलाड़ी जीवन, छोटी दूकान से लेकर के बड़ा उद्योग करना इत्यादि। जब सपने देखेंगे ही नहीं तो ईश्वर भी उन्हें कैसे सच करेगा। सपने सजाने की भी एक सही उम्र होती है। एक निश्चित समय होता है। यदि उसे आपने नहीं पहचाना तो भी मंजिल प्राप्त करने में देर हो सकती है।

अब बात करें कि सपनों को सच कैसे करें या साकार कैसे करें। एक उचित दिशा में साफ नीयत का देखा गया सपना सच करने की तो एक ही जादू की छड़ी है ‘मेहनत’ की। प्यारे दोस्तों जीवन में मृत्यु के बाद दूसरा सबसे बड़ा सच ये है कि बिना मेहनत के जय-जयकार नहीं होती, लक्ष्य प्राप्त नहीं होता। अंग्रेजी में भी कहावत है कि

NO PAIN - NO GAIN, MORE & MORE PRACTICE.

 ये बात तो निर्जीव वस्तुओं पर भी लागू होती है।

जब एक पत्थर भी बिना मेहनत सहन करे मूर्ति नहीं बन सकता, पूजा नहीं जा सकता तो फिर हम मनुष्यों में तो आत्मा है, चेतना है, सुन्दर मन-मस्तिष्क है। कुछ पाना है तो अपने आराम, सुख-चैन को खोना तो पड़ेगा। जैसे कि आप एक खिलाड़ी हो तो मेडल पाने के लिये, सपनों को सच करने के लिये बार-बार मेहनत तो करना पड़ेगा। आज के जमाने में इतने अर्जुन भी नहीं बचे हैं कि एक ही बार में चिड़िया की आँख दिख जाए बल्कि ऐसे अर्जुन बचे हैं जिन्हें तो चिड़िया ही नहीं दिख रही है। बस समृद्धि के, उपलब्धि के मीठे-मीठे फल ही दिख रहे हैं पर ऐवैं ही अनजाने बने बैठे हैं कि मीठे फल का रास्ता जाएगा तो चिड़िया की आँख से ही।

चलिए अब अन्त में 4 लाइनों के साथ इस अध्याय का मतलब समझते है कि ‘सपने उन्हीं के सच होते हैं जो सपने देखते है। अतः जीवन के निश्चित समय-सीमा या फिर जब जागो तभी सवेरा में देखा गया सपना जरूरी है। तत्पश्चात दुनिया की परवाह न करते हुये, दूसरे दिन निकल पड़ि़ये इसे सच करने के लिये।

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