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समय 25 से 52 का

दीपक मालवीय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15416
आईएसबीएन :978-1-61301-664-0

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युवकों हेतु मार्गदर्शिका

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सफलता लकीरों की मोहताज नहीं

यदि आप एक मिनट में इस पुस्तक के पन्ने पलट कर देखना चाहते हैं कि ये कैसी है तो इस अध्याय पर जरूर रुक जाइए, क्योंकि इसमें कोई नकारात्मक कठिनाइयों का वर्णन नहीं है। इसमें जीवन की सकारात्मक ऊर्जा का वर्णन है। हो सकता है ये आपको वो शक्ति याद दिला दे जो आपके भीतर निहित है। इस अध्याय को पढ़कर आपको आनन्द भी आयेगा और कुछ नया करने की प्रेरणा भी मिलेगी।

मेरी तो किस्मत ही खराब है ! भाग्य में कुछ नहीं लिखा है। इस देश में प्रति मिनट हर दूसरा आदमी ये तकिया कलाम बोलता है। किस्मत खराब नहीं हुआ करती दोस्तों ! भाग्य भी खाली नहीं हुआ करता है, हाँ ये हो सकता है कि किसी के जीवन में कठिनाई ज्यादा आती है, तो किसी के जीवन में कम, पर उनको पार करके दोनों ही लोग सफलता प्राप्त कर सकते हैं और करते भी हैं। इस बात का साक्षात प्रमाण ये है कि लोग ये कहते फिरते हैं कि मेरे पास टाइम नहीं है। समय नहीं मिलता और उन्हीं लोगों से लाख गुनी तरक्की पा चुके लोग जैसे - अंबानी, अमिताभ बच्चन, सचिन तेन्दुलकर, कलाम आदि लोगों के पास भी सिर्फ 24 ही घंटे थे और आपके पास भी 24 घंटे हैं।

एक बार सिकन्दर महान अपनी युवावस्था में कुछ ठान कर घर से बाहर निकला था और अपने गुरू के पास गया और हाथ दिखाया, इस पर गुरू ने कहा कि सिकन्दर तुम्हारे हाथों में तो सफलता की लकीर ही नहीं है। न ही भाग्य की रेखा है। तुम तो जीवन में कुछ भी नहीं कर पाओगे न ही तुम्हारा जीवन सार्थक है। इस पर सिकंदर ने अपनी अंतरात्मा में आत्मविश्वास के साथ दृढ़ संकल्प किया और तलवार उठा के अपने हाथों में लकीरें बना लीं और बोला गुरू जी देखो अब तो बन गईं  न सफलता की लकीरें और उस दिन से जो घोड़े पर बैठ कर निकला तो दुनिया के कई देश विदेश, रियासत जीतने के बाद ही हार माना। सिकंदर इस अध्याय का सबसे सर्वोत्तम उदाहरण है उनके लिए जो ये समझते हैं कि सफलता हाथों की लकीरों में बसती है, मंजिल का रास्ता रेखाओं से होकर जाता है।

इस दुनिया में ऐसे भी कई लोगों ने सफलता हासिल की है जिनके तो हाथ ही नहीं हैं, न ही रेखाएं और तुम्हारे पास तो हाथ भी हैं और सब कुछ है फिर क्यों तुम उन लोगों से पीछे रह गये...?

अगर इस प्रश्न का जवाब आपके पास है तो... जा के आईने को बता दीजिए अन्यथा मेरी सलाह मानिए। कुछ लोग इस भ्रम में और भाग्य का इंतजार करते-करते इतना समय गवां चुके हैं या मानसिक स्थिति से इतना घुन हो चुके हैं कि उन्हें ये किताबी ज्ञान लगता है जो किताबों में ही अच्छा लगता है। उन्हें लगता है कि लेखक को क्या पता हमारी स्थिति के बारे में, एक बार हमारी जगह ले के देखे, तो उन महाशयों से मैं कहना चाहूँगा कि ‘गीता का ज्ञान’ भी तो फिर किताबी है, हमारे चारो वेद, महापुराण, उपनिषद, सब किताबी ज्ञान है। कुरान, बाइबिल सब किताबी ज्ञान ही तो है पर इनसे तो हमारा पूरा धर्म चल रहा है। अलग-अलग समुदाय की धार्मिक भावना चल रही है। और तो और हमारा संविधान भी फिर किताबी ज्ञान है जिससे पूरा देश चल रहा है। कुछ लोग इस किताबी ज्ञान को पढ़कर आइ.ए.एस., आइ. एफ.एस. बन जाते हैं और कुछ वैसे के वैसे जड़बुद्धि ही रहते हैं। तो आप इसे किताबी ज्ञान ही मानते हैं या कुछ करने की सलाह।

हाँ... या    ना...।

जिनके मन में अभी भी ये सवाल आता है कि हम कई बार कोशिश कर चुके हैं पर सफलता हाथ नहीं लगी, उनसे मैं ये पूछना चाहता हूँ कि फिर कोशिश बन्द क्यों कर दी, आपने बीता हुआ कल देखा है, आज देखा है परन्तु आने वाला कल किसी ने नहीं देखा। हो सकता है थोड़ी सी मेहनत से, एक बार और कोशिश से शायद मंजिल मिल जाए इसलिए अपनी किस्मत को मत कोसिए, भाग्य को दोषी मत ठहराइए। अगर आपने कोई सुन्दर सपना देखा था तो उसे पूरा करने के लिए मेहनत तो लगातार करना पड़ेगा।

दोस्तों ! अब प्रकृति और विज्ञान के रहस्य पर प्रकाश डालना चाहूँगा जो इस अध्याय में और जीवन के इस दौर में आपके लिये जरूरी है। जो अपने अवचेतन मन ‘सब कॉन्सस माइन्ड’ की कहानी है। ब्रह्माण्ड की पूरी शक्ति, कण-कण से पहाड़ बनाने की शक्ति इसी में निहित है। इसी के बारे में कुछ तथ्य नीचे आपको बताने जा रहा हूँ...

  • आदमी पूरे जीवन भर इस ‘सब कॉन्सस माइन्ड’ का सिर्फ 5 प्रतिशत ही उपयोग कर पाता है क्योंकि उसे इसका उपयोग करना आता ही नहीं है जब कि ये अवचेतन मन तो रात में भी नहीं सोता है

  • इस दुनिया में जिन भी महान लोगों ने बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ पाई हैं तो यकीनन इसका 95 प्रतिशत उपयोग करने पर ही, इसका अध्ययन करने के बाद ही पाई है। अन्यथा एक आम आदमी अपने जीवन में जो कुछ पाता है वो तो उसके 5 प्रतिशत उपयोग करने पर ही पा लेता है। अगर आप भी इसका उपयोग 5 प्रतिशत से बढ़ा दोगे तो बहुत कुछ हासिल कर सकते हो जीवन में।

  • अवचेतन मन का फंडा ये है कि अगर बार-बार हम ये बोलते रहेंगे कि हमारी तो किस्मत ही खराब है, भाग्य में कुछ नहीं लिखा, तो ये जनाब आपको वैसा ही बना देंगे क्योंकि इसमें अनन्त शक्ति निहित है। इसे ही मनोवैज्ञानिकों ने दो बातों का उद्गम स्रोत माना है। पहला कि हमेशा सकारात्मक सोचना चाहिए और दूसरा कि जैसे विचार रखोगे वैसे ही बन जाओगे। ऐसा हमारे संत जन भी कहते हैं। अगर सच में विधाता ने आपके खाते में कुछ अच्छा लिखा भी हो तो ये इसे पूरी तरह मिटाने की शक्ति रखता है। इसलिए किस्मत को, ईश्वर को या किसी और को मत कोसिए बल्कि सकारात्मकता के साथ मेहनत कीजिए।

अभी जो आपको अवचेतन मन की सच्चाई बताई है उसका प्रमाणित उदाहरण बताता हूँ आपको, जोकि इस पर शोधकर्ताओं ने नाइजीरिया की एक जेल में कैदी के साथ प्रयोग किया था। उस कैदी को वहाँ की सरकार ने मौत की सजा सुनाई थी। तो शोधकर्ताओं ने कहा कि आपको फाँसी से अच्छा दूसरे तरह से मारेंगे जिससे कि आपको दर्द कम होगा और तड़पना भी नहीं पड़ेगा। बस कुछ ही सेकेंड में आपकी मौत हो जाएगी। आपको साँप से डसवाऐंगे, इससे आपकी तुरन्त ही मौत हो जाएगी। और दो दिन बाद जब उसे कुर्सी पर बैठाया गया तो उसकी आँखों पर पट्टी बांधी गई और फिर उसे ‘साँप की जगह एक पिन चुभाई गई तो वो कैदी कुछ ही सेकेंड में मर गया।’ इसका मतलब उसने दो दिन से ही बात अवचेतन मन में बैठा ली थी कि मुझे साँप से डसवाऐंगे और पिन चुभाने पर उसके शरीर में साँप की कल्पना हुई और अवचेतन मन के आदेश ने शरीर को मार डाला जब कि वहाँ साँप था ही नहीं। तो ये होती है अवचेतन मन ‘दिमाग का दूसरा जाग्रत हिस्सा’ की, ब्रह्माण्ड की शक्ति। अब आपके ऊपर है आप चाहो तो इसका सदुपयोग कर लो या फिर किस्मत खराब बोल के इसका नकारात्मक उपयोग कर लो।

अभी रिसर्च यहीं खत्म नहीं हुई थी शोधकर्ताओं की । मरने के बाद जब उस कैदी का पोस्टमार्टम कराया गया तो अवचेतन मन की शक्ति का एक और परिणाम सामने आया कि असल में उसकी मौत जहर से ही हुई थी जैसा कि साँप के डसने के बाद निकलता है। क्योंकि पिन की चुभन तो उसे या हमें पहले भी कई बार लगी है। साँप का डर तो उसके दिमाग में पहले से ही भरा था, लगातार दो दिन तक वो ये ही सोच रहा था। पिन तो बस इशारा मात्र था। जैसे ही उसे पिन चुभाई गई उसके अवचेतन मन ने पूरे शरीर में बिल्कुल वैसा ही साँप का जहर छोड़ दिया था जैसा कि साँप के काटने पर फैलता है। ये रिसर्च सबके लिए चौंकाने वाली थी कि अवचेतन मन अपने भीतर कितनी शक्तियाँ समाहित करके बैठा है।

उपरोक्त चार उदाहरण आपको सिर्फ ये समझाने के लिये बताए हंक कि आप आज से ही किस्मत खराब है का तकिया कलाम छोड़ दो। अन्यथा बना बनाया खेल भी बिगड़ सकता है। भाग्य का लिखा हुआ मिट भी सकता है।

तकदीर के मामले में इस दुनिया में दो तरह की मानसिकता वाले लोग होते हैं। पहली तरह के वो जो हमेशा किस्मत को लेकर रोते रहते हैं और दूसरे वो जो इस भ्रम में रहते हैं कि हम तो कई ज्ञानियों को हाथ दिखा चुके हैं। हमारे भाग्य में बहुत सारा धन, दौलत, इज्जत है। हमें तो बस खुशी से आराम करना है। किस्मत में है तो मिल ही जाएगा। पर दोनों ही तरह के लोग इस बात से अंजान हैं कि इस दुनिया में जब तक प्रकृति के पास अपनी मेहनत गिरवी नहीं रखोगे, अपने संघर्ष का हिसाब नहीं दिखाओगे तो ये किसी को कुछ नहीं देने वाली, आपकी भाग्य की राशि लैप्स हो जाएगी। जैसे हर निश्चित समय में शासकीय निर्माण कार्य के लिये धन तो आता है पर यदि हम उस समय में कोई निर्माण का हिसाब न दिखाएं तो वो राशि स्वतः लैप्स हो जाया करती है। ये अपनी कर्मभूमि होती है। दोस्तों, यहाँ आने के बाद आपको कभी न कभी मेहनत तो करनी ही पड़ेगी।

भगवान राम को भी, जो राज सिंहासन मिला था, अंत में उसमें 14 सीढ़ियाँ थीं - और ये 14 सीढ़ी उन्होंने 14 साल वनबास काटने के बाद ही चढ़ी थीं। इससे आपको जो भी अनुमान लगाना हो आप लगा सकते हो।’

इस देश में युवा पीढ़ी का अधिकांश हिस्सा अपने माँ-बाप का सपना लेकर दूसरे बड़े शहर में जाता है। और कुछ लोग अपने चित्त में बैठा लेते हैं कि ‘जो होगा देखा जाएगा’। सफलता को इस बात से बहुत चिढ़ है। इसका मतलब होता है कि आप अपने आलस्य के खातिर एक सीमित सी मेहनत करते हैं। जितना सिलेबस परीक्षा में पूछा जाएगा उसका आधा ही पढ़ते हो या फिर जैसे-तैसे पढ़ते हो, बाकी किस्मत के भरोसे छोड़ देते हो कि जो होगा देख लेंगे। नहीं ! आपको इस समय बोलना चाहिए कि मुझे पूरा विश्वास है कि मैं सम्मानजनक अंक प्राप्त करूंगा। या फिर प्राविण्य सूची के 10 वें नम्बर पर भी आ जाऊंगा। घर छोड़ने के बाद किसी भी कार्य से पहले आपको उस उद्देश्य को याद करना चाहिए जिस उद्देश्य को पूरा करना हो, खरी सफलता पाना हो, तो उन लोगों की तरह करना ही पड़ेगा जो हर समय लक्ष्य को ध्यान में रखकर मेहनत करते हैं और सफलता प्राप्त कर भी चुके हैं। जिनका उदाहरण आपको घर में भी कभी-कभी मिलता रहता होगा।

ऐसे युवा नेता भी चुनाव में हार जाते हैं जिनके पिता पिछले 20-25 साल से राजनीति में हैं, जिनका हर जगह दबदबा और चर्चे चलते हैं। ऐसे लोग अपनी किस्मत को धन्य मानकर तथा विरासत में मिले पिता के चर्चे को लेकर भ्रम में हार जाते हैं। क्योंकि जब तक धूप में निकलकर, लोगों से मिलकर उनकी समस्या नहीं पूछेंगे तो हारना तय है उनका। वही निष्कर्ष यहाँ भी निकलता है कि जब तक प्रकृति को अपनी मेहनत का आईना नहीं दिखाओगे तो वो लकीरें भी कुछ नहीं करेंगी जो तुम्हारे हाथों में भरपूर हैं।

सफलता आदी नहीं है विधि के विधान की
सफलता तो  मोहताज  है  कर्म  प्रधान की

ऐसा ही कुछ अपने शास्त्र भी कहते हैं और सभी धर्मों में भी कुछ इसी प्रकार वर्णन है। सिकन्दर ने क्या किया था, उसके हाथों में तो कोई लकीरें ही नहीं थीं। सिकन्दर की तरह हम भी ‘मेहनत की कलम में, पसीने की स्याही से, इस कोरे जीवन में रंग भर सकते हैं।’ उसी स्याही से जीवन में हर तरह के रंग भर सकते हैं। ये बात बता रहा हूँ मैं जीवन के एक निश्चित समय के बाद। बाकी उस समय से पहले आपका जीवन संघर्ष से भरा होना चाहिए बिल्कुल सफेद जिसमें किसी भी प्रकार का कोई भी रंग नहीं होता।

आपने घर के बड़ों से ये बोलते सुना होगा कि अभी आपकी उम्र है मेहनत कर लो - पढ़ लो फिर बाद में तो मौज ही है। बहुत से लोगों को ये बात समझ में नहीं आती है। उन लोगों को मैं अपनी रंगों की भाषा में समझाता हूँ : ‘जीवन के एक खास हिस्से में सफेद रंग होना ही चाहिए, यदि उस खास समय में आपने कोई दूसरा रंग भर लिया लापरवाही के चलते तो आपका बाकी का पूरा जीवन बेरंग ‘सफेद’ हो जायेगा, जिस समय आपके साथी गण, दोस्त जीवन का आनन्द उठाएंगे।’

और याद रखना दोस्तों ! जिनके पास शुरू में सफेद रंग होता है वो बाद में जो चाहे रंग बना सकता है। सफेद की सहायता से कोई भी रंग बनाया जा सकता है। पर किसी भी एक रंग से, लापरवाही के चलते बाकी के रंग नहीं बनाये जा सकते।

तो युवा पीढ़ी के प्यारे उम्मीदार्थियों ! चाहे वो छात्र हो, नेता-अभिनेता, खिलाड़ी या व्यापारी हो...

सफलता को कभी भाग्य के तराजू से मत तोलना।

न ही लकीरों में खोजना।

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