नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
प्राकृतिक गुण
कुत्ता क्या बछड़ा बन जाता,
आदत अपनी छोड़ न पाता ।
लाख नहाओ दूध द्रव्य से,
भौं-भौं करना छोड़ न पाता,
कुत्तो से मुख मोड़ न पाता,
सरल पूँछ को न कर पाता,
कुत्ता क्या बछड़ा बन जाता,
आदत अपनी छोड़ न पाता ।।१।।
मेघ बरसता केले ऊपर
जल का प्यार नहीं है पाता,
रिम-झिम करते मेघ बेचारा,
केले से खुद सरमा जाता
आदत अपनी छोड़ न पाता
कुत्ता क्या बछड़ा बन जाता ।।२।।
नागों को तुम दूध पिलाओ
नहीं ज़हर है जाता,
जहाँ आयी फुस्कार नांग की
अमिय नहीं है आता
आदत अपनी छोड़ न पाता ।
कुत्ता क्या बछड़ा बन जाता ।।३।।
सौ बार धुलो काले कम्बल को
रंग स्वेत न आता
पायी है जो प्रकृति जन्म से
कभी बदल न पाता,
आदत अपनी छोड़ न पाता
कुत्ता क्या बछड़ा बन जाता ।।४।।
कृषक बोये बबूल खेत में
नहीं आम है पाता,
छाँव न देता कभी पथिक को
काँटे ही दे पाता।
आदत अपनी छोड़ न पाता
कुत्ता क्या बछड़ा बन जाता ।।५।।
अमृत आया अंजन बनकर
उल्लू के चक्षु में लग जाता
'प्रकाश' दुःखी है इसी बात से
उल्लू रवि दर्शन ना पाता
आदत अपनी बदल न पाता
कुत्ता क्या बछड़ा बन पाता ।।६।।
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