| नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
मानव धर्म
 आज विश्व के विकासशील वातावरण में, 
 धर्म के आवरण में 
 धर्म को धर्म ही निगलता जा रहा है, 
 यह कैसा नजारा आ रहा है? १
  
 कोई भी धर्म आपस में बैर नहीं सिखाता है 
 प्यार और स्नेह का मार्ग दिखाता है 
 प्यार और स्नेह को ही धर्म का मार्ग बताता है। 
 प्यार और स्नेह की सीढ़ी पर चढ़ते-चढ़ते 
 एक दिन मसीहा बन जाता है।।२ 
 
 परन्तु उस मसीहे के अनुयायी 
 खोखले आडम्बर में 
 शान्ति प्रिय अम्बर में  
 धर्म के ठेकेदार 
 मसीही के दावेदार 
 कुल्टा के जमाने में 
 उल्टा को मनाने में 
 हत्याये कराये जा रहे हैं। 
 विश्व को श्मशान बनाये जा रहे हैं।।३ 
 
 उन्हें याद नहीं मसीही की भाषा 
 नहीं मालूम धर्म की परिभाषा 
 कृष्ण का भोग, बिदुर का साग 
 सुदामा के चावल 
 राम का भोग सबरी के बेर 
 भाई का प्यार 
 
 जैन का स्नेह 
 चींटी तक न कुचले पैर से 
 गौतम का प्यार अहिंसा परमो धर्मा 
 बाइबिल कदम-कदम पर प्यार सिखाती है। 
 यही सारी दुनियाँ बताती है। 
 
 जिसका सच्चा ईमान 
 वही वास्तविक मुसलमान 
 मुसलमान धन की मदद करके 
 ब्याज नहीं लेता है। 
 प्यार का बदला प्यार से देता है 
 अब अल्लाह को प्यारी है कौन कुर्बानी? 
 
 भीड़ में एक साँड़ खून बहाता जा रहा है 
 जनता मरती जा रही है 
 एक जवान प्राणों की परवाह के बगैर 
 भीड़ में घुस जाता है। 
 साँड़ को खदेड़ देता है। 
 वही कुरान में सच्चा मुसलमान कहाता है। 
 यह अर्थ मालूम होना चाहिए जवानी 
 अल्लाह को यही प्यारी है कुर्बानी।। 
 
 सिख का एक जैसा पहनावा 
 एक जैसा रहन सहन 
 एक जैसा व्यवहार 
 प्रेम ही है जिसका आधार 
 प्रेम जहाँ नहीं है वहीं दानवता है 
 प्रेम पर ही टिकी मानवता है 
 मानव ही प्रेम का अर्थ जानता है 
 जो प्रेम जानता है वही मानव धर्म मानता है 
 आपस में हिल मिल कर रहना सच्चा कर्म है। 
 
 सभी धर्मों का सार मानव धर्म है।
 
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