नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
मैं नहीं कहता उससे उबार लो
वासनाओं के जंगल में बोये हैं काँटे
नहीं कहता कि उससे उबार लो
यह मांग नहीं है हमारी।
केवल वासनाओं से ऊपर उठने की,
शक्ति दो - और अपनी भक्ति दो।
संसार के झंझावंतों से जूझ रहा हूँ।
मुझे उबार लो - यह हमारी प्रार्थना नहीं है।
इन तूफानों से जूझने की शक्ति दो,
और अपनी भक्ति दो।
मन के दर्पण पर धूल भरी है,
उसे साफ कर निर्मल मन दो।
यह मेरी प्रार्थना नहीं है,
स्वयं उस मन मुकुर को साफ करने की शक्ति दो
और अपनी भक्ति दो।।
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