नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
प्यासा रहा मैं उम्र भर बस तेरे सहारे
प्यासा रहा मैं उम्र भर, बस तेरे सहारे,
जैसे कि प्यासी सीप सी, दरिया के किनारे।
उड़ने की आरजू थी मेरी, नील गगन पर,
पर काट दिये तुमने, उड़ूं किसके सहारे ??
समझा नहीं मैं आज तलक तेरे इरादे,
वादे सभी तुम्हारे हुये नेता के वादे।
अब तो नहीं एतवार रहा तेरी नीयत का,
जाने मुझे ले जाके किस दर पर फंसा दे?२
मैं पैदाइशी अंधा न था, हुआ इश्क में अंधा,
क्या जानता था मैं कि तेरा यही धंधा।
जब आँख खुली मेरी तो बड़ी देर हो चुकी,
तब तक तो कस चुकी मेरी गरदन तेरा फंदा।।३
रही काबिले तारीफ तेरी हर दौर में हस्ती,
दोनों जहान की लगी आंचल में तेरे मस्ती।
रूप पे नकाब कितने तेरे आज ये जाना,
मैंने तमाम उम्र की बस तेरी परस्ती।।४
भगवान की कृपा से यह राज लिया जान,
दुनिया बनी रहे यही बाकी रहे इंसान।
भगवान की तू माया, इंसान की परीक्षा,
बच जायेगा जो तुझसे, हो जायेगा भगवान।।५
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