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चेतना के सप्त स्वर

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15414
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7

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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ

ये कैसा जीवन है मेरा?


ये कैसा जीवन है मेरा?
संसार की खेती में हमने कामना के बीज डारे,
अभिमान का बान लिये मैं, प्रतिभट खोचूँ जग में सारे।
नित्य नूतन कामना पर मूर्ख मन है मोह धारे,
पुलक कर प्रति कामना को लोभ के कर से सवाँरे।

उद्विग्नता का है बसेरा
ये कैसा जीवन है मेरा?

सिन्धु व्यापी प्यास नयन भर घुमू जग में सारे,
जितनी तरणी आगे बढ़ती, होते उतने दूर किनारे।
वासना जल सींच उपवन काम की वगिया संवारे,
अन्ततः उर बाटिका में, छोभ के फल पाये सारे।।

भ्रम का यह कैसा घेरा?
ये कैसा जीवन है मेरा?

मयकृत इन्द्रप्रस्थ नित अद्भुत, जल को थल भाषित करता,
निरखि सुयोधन भ्रमित, चकित, चित, नित, नूतन महासमर रचता।
नित्य नये लाक्षागृह रचता, नित्य स्वयं जलकर मरता।

तृष्णा के रथ पर हो सवार, कृष्णा का चीर हरण करता।।

मन है अहंकार का चेरा,
ये कैसा जीवन है मेरा?

जो है उस पर विश्वास नहीं, जो नहीं है उसकी आश लिये,
इक हाथ में अपना सृजन लिये,इक हाथमें अपनाविनाशलिये।
यम दौड़े पीछे पाश लिये, बढ़ता जाऊँ विश्वास लिये,
इक मुट्ठी आकाश लिये, बस कुछ गिनती की सांस लिये।।

खुद अपना ही है लुटेरा,
ये कैसा जीवन है मेरा?

* *

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