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चेतना के सप्त स्वर
चेतना के सप्त स्वर
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 15414
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आईएसबीएन :978-1-61301-678-7 |
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि
हे आत्मोसर्ग के मूर्त रूप!
भारत माता के सिंह पूत।
आपत्ति काल के मित्र हो तुम,
शत्रुओं हेतु तुम यम के दूत।
यह धरा प्रणाम तुम्हें करती,
आकाश तुम्हें वंदन करता।
तुम्हें सूरज-चांद नमन करते,
त्रैलोक्य तुम्हें अभिनंदन करता।।२
भारत का कण-कण ऋणी तुम्हारा,
जन-जन के अन्तस्थल वासी।
बलिदान देख कर वीर तुम्हारा,
ऋतुओं में छा गई उदासी।।३
हँस-हँस कर जीवन दान किया,
हँस गोली सीने में खाई।
तुम्हें लाज दूध की रखने में,
बच्चों की याद नहीं आई।।४
तुम्हें लिपटा देख तिरंगे में,
खुद सहम गई थी कुर्बानी।
फिर दशों दिशायें चीख उठी,
जय सेनानी, जय बलिदानी।।५
फिर पुत्र तुम्हारा बोल उठा,
मैं भी फौजी बन जाऊँगा।
बदला लूंगा पापा का,
या सीने में गोली खाऊँगा।।६
शत्-शत् प्रणाम स्वीकार करो,
हे वीर बाँकुरे भारत के!
असली के नायक हो तुम्ही वीर।
भारत 'प्रकाश' के जन गण मन के।।७
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पुस्तक का नाम
चेतना के सप्त स्वर
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