नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
अश्रु धार मत आने दो
भारत माँ के आँखों में,
अश्रु धार मत आने दो
रहो सदा तुम मिल जुल कर,
प्रेम भाव ना जाने दो
देश तुम्हारा भारत है,
भाई तुम्हारा जन, जन है
बहिन तुम्हारी मानवता है
परिवार तुम्हारा हर तन है
इसकी सेवा करो हमेशा
इसको अपर्ण तन-मन है।।(१)
बीज न बोओ भेद-भाव के,
यह मानवता का शोषक है,
रहे निगलता निशि वासर यह
मानवता का जो पोषक है
आग सुलगती भेद-भाव से
हीरे के टुकड़े होते हैं
यामिनियाँ नाचती सड़क पर
बालक चिर निद्रा सोते हैं
बन्धु-बन्धु तुम एक हो भैया
प्रेम भाव ना जाने दो
भारत माँ के आँखों में,
अश्रु धार मत आने दो।।(२)
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