नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
पावस
पावस के आते आते ही,
बसुधा पर छाई हरियाली।
बसुन्धरा जब तड़प रही थी,
पावस ने लौटाई खुशियाली।।
नव जीवन सा आ गया धरा पर,
खग कुल-कुल सा बोल रहा।
खुशियाँ फैली खेतों पर,
बसुधा का आँचल डोल रहा।।
तड़प रहे थे प्यासे नैना,
अब सपना साकार हुआ।
पत्ता-पत्ता खिल गया आज,
जनु काम देव अवतार हुआ।।
रिम झिम वर्षा से आनन्दित हो
झूम रही डाली डाली।
पावस के आते आते ही,
वसुधा पर छाई हरियाली।।१
प्रकृति सुन्दरी आनन्दित हो,
मुखड़े पर घूँघट डाल रही।
पग-पग पर मखमल बिछा देख,
चल मतवाली चाल रही।।
इन कमल समूहों ने आनन्दित हो,
दी है अधरों की लाली।
पावस के आते आते ही,
वसुधा पर छाई हरियाली।।२
मेघराज! घनश्याम आज,
पहने हैं ताज, कदमों पर मोह बढ़ाते हैं।
घूम घूम कर, उमड़-उमड़ कर,
छल-छल कर जल छलकाते हैं।।
प्रकृति सुन्दरी का अल्हड़ पन,
तुमको आज सुहाता है।
घनश्याम! बता दो हमें आज,
जो समझ न मुझको आता है।।
अब तक थे तुम कहाँ रहे?
जब बसुधा थी खाली खाली।
पावस के आते आते ही
बसुधा पर छाई हरियाली।।३
सौगन्ध तुम्हें धरती माँ की,
ठीक समय पर आना होगा।
हरित क्रान्ति आये बसुधा पर,
ऐसा कदम बढ़ाना होगा।।
ग्राम देवता खेतों पर हों,
कोई न इधर-उधर रहे।
खिलता गुलाब हो आनन पर,
कोई न प्यासा अधर रहे।।
कदम-कदम पर डाल डाल पर,
बोले कोयल काली!
पावस के आते-आते ही
बसुधा पर छाई हरियाली।।४
हे जग के पालन हार प्रभो!
यह विनय हमारी सुन लेना,
पावस के दिन सदा रहें,
हरियाली ही हरियाली देना,
घनश्याम बीच चमके 'प्रकाश'
बूंद-बूंद मोती बन जाये।।
भेद भाव को भुला सदा
पावस प्रेम गले लग जाये।।
हे पावस बाटन हार प्रभो!
तुम सबको देना खुशियाली
पावस के आते आते ही
बसुधा पर छाई हरियाली।५
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