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चेतना के सप्त स्वर
चेतना के सप्त स्वर
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2020 |
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ :
ई-पुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 15414
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आईएसबीएन :978-1-61301-678-7 |
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5 पाठक हैं
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
बदल रही पहचान निरन्तर भारत के गाँवों की
बदल रही पहचान निरन्तर, भारत के गाँवों की।
पक्के लिन्टर जगह ले रहे, छप्परों के छाँव की।।
हाई टेन्सन विद्युत खम्भे, खड़े दीखते खेतों बीच।
जे०आर०वाई० के पड़े खरन्जे, प्रतिदिन घटता जाता कीच।।
बदली बदली चाल दीखती, गोरी के पाँवो की।
बदल रही पहचान निरन्तर, भारत के गाँवों की।१
पहले बैठ के चौपालों पर, आल्हा, विरहा गाते थे।
बदन तोड़ कर मेहनत करते, रात में मौज मनाते थे।।
अब भारत का अनुभवी कृषक, रोज कचहरी जाता है।
राजनीति के दलदल में, वह गोतेमार नहाता है।।
गुटबन्दी और दलबन्दी में फिकर लगी है दाँव की
बदल रही पहचान निरन्तर, भारत के गाँव की।।२
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पुस्तक का नाम
चेतना के सप्त स्वर
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