लोगों की राय

नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर

चेतना के सप्त स्वर

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :156
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15414
आईएसबीएन :978-1-61301-678-7

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ

पथिक चर्चा


हे पथिक! रुक कर तनिक,
एक बात सुन लो,
कर रहा हूँ एक विनती,
ऐसी सरल गति हार चुन लो।
जिस मार्ग पर तुम चल रहे हो,
वह मार्ग है उत्तम सुहाना
उस मार्ग में यदि काँटे मिलें,
उनको सदा मिलकर निभाना।।१।।

आँधियाँ आती रहेंगी;
पर कभी तुम रुक न जाना।
उद्देश्य है मंजिल मिले,
यह सदा तुम गुनगुनाना।
गुनगुनाना सुन तुम्हारा,
आँधियाँ रुक जायेंगी।
स्वर तुम्हारे स्वर मिलाकर,
गीत मीठा गायेंगी।।२।।

पत्थर मिलेंगे मार्ग में,
वह तुम्हारे बन्धु होंगे।
पार करना होगा तुम्हें जब,
गहरे भयानक सिंधु होंगे।
पाषाण से पाषाण मिलकर,
सेतु वह बन जायेंगे।
पार कर उस सिन्धु को,
मंजिल स्वयं दिखलायेंगे।।३।।
पथ में तुम्हें मधुबन मिले,
वह तुम्हारा बाधक बनेगा।
रुक जाओगे जब छाँव में,
अवरोध का साधक बनेगा।
तितलियाँ मिलें, कलियाँ मिलें,
पुष्पों सजी ऐसी डगर हो।
सम्मुख तुम्हारे मंजिल रहे,
लोभ पर अंकुश मगर हो।।४।।

कर्म के तुम हो पुजारी।
मंजिल तभी तुम पाओगे।
बीज बोना प्रेम के,
जग में तुम्हीं सिखलाओगे।
'प्रकाश' से जीवन भरेगा,
सारा जग अपना होगा।
विकास रहेगा जीवन में,
सच्चा सारा सपना होगा।।५।।

* *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai