नई पुस्तकें >> चेतना के सप्त स्वर चेतना के सप्त स्वरडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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डॉ. ओ३म् प्रकाश विश्वकर्मा की भार्गदर्शक कविताएँ
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भारतीय कवितायें
पथिक चर्चा
हे पथिक! रुक कर तनिक,
एक बात सुन लो,
कर रहा हूँ एक विनती,
ऐसी सरल गति हार चुन लो।
जिस मार्ग पर तुम चल रहे हो,
वह मार्ग है उत्तम सुहाना
उस मार्ग में यदि काँटे मिलें,
उनको सदा मिलकर निभाना।।१।।
आँधियाँ आती रहेंगी;
पर कभी तुम रुक न जाना।
उद्देश्य है मंजिल मिले,
यह सदा तुम गुनगुनाना।
गुनगुनाना सुन तुम्हारा,
आँधियाँ रुक जायेंगी।
स्वर तुम्हारे स्वर मिलाकर,
गीत मीठा गायेंगी।।२।।
पत्थर मिलेंगे मार्ग में,
वह तुम्हारे बन्धु होंगे।
पार करना होगा तुम्हें जब,
गहरे भयानक सिंधु होंगे।
पाषाण से पाषाण मिलकर,
सेतु वह बन जायेंगे।
पार कर उस सिन्धु को,
मंजिल स्वयं दिखलायेंगे।।३।।
पथ में तुम्हें मधुबन मिले,
वह तुम्हारा बाधक बनेगा।
रुक जाओगे जब छाँव में,
अवरोध का साधक बनेगा।
तितलियाँ मिलें, कलियाँ मिलें,
पुष्पों सजी ऐसी डगर हो।
सम्मुख तुम्हारे मंजिल रहे,
लोभ पर अंकुश मगर हो।।४।।
कर्म के तुम हो पुजारी।
मंजिल तभी तुम पाओगे।
बीज बोना प्रेम के,
जग में तुम्हीं सिखलाओगे।
'प्रकाश' से जीवन भरेगा,
सारा जग अपना होगा।
विकास रहेगा जीवन में,
सच्चा सारा सपना होगा।।५।।
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