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चश्में बदल जाते हैं

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15408
आईएसबीएन :0000000000

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बाप बेटा को समझाना चाहता है कि युग बदल गया है-तुम्हारा चश्मा बदलना जरूरी है। वृद्ध पिता के चेहरे पर हँसी बिखर जाती है।

40

इस लघु वार्तालाप के बीच अमलप्रकाश सहसा बोल उठा-'एक आदमी के लिए हर महीने दो हज़ार रुपये? टू मच।' स्वाभाविक ढंग से सोमप्रकाश धीरे से बोले-'ऐसा लग रहा है क्या? एक आदमी अपने आप से, ऐसे माने इस तरह से आराम से निर्झंझट निश्चिन्त रहना चाहे तो इससे कहीं ज़्यादा खर्च पड़ जाता है। यहाँ डाँक्टर की फीस, बिजली, फोन की फीस-सब फ्री। यहाँ तक कि हर महीने दो इनलैण्ड और दो पोस्टकार्ड भी मुफ्त में मिलेंगे। और एक्सट्रा सुविधा-लोडशेडिंग की असुविधा नहीं। इन्वर्टर जेनेरेटर हर समय मौजूद है। घर में क्या ये सब हो पाता है? और फिर ज़्यादा सोचो तो ज़्यादा। मुझे तो लगा था कम ही है। इनवर्टर का शायद कुछ नॉमीनल चार्ज... '

'और ये जो एक विराट धक्का', बोल उठा छोटा बेटा, 'पचास हज़ार रुपया एडवान्स जमा करके तभी... '

'अहा, उसी तरह पूरे एक साल तो सम्पूर्ण फ्री। और दूसरे साल हॉफ पे... '

'फिर भी-है चालाकी। इस बीच अगर कोई... ये है... मानें मर वर गया तो वह रुपया उसके वारिसों को नहीं मिलेगा। 'होम' डोनेशन के तौर पर ले लेगा।... समझ रहे हैं न मामला क्या है?'

सोमप्रकाश ज़रा हँसे। बोले-'जिसका कोई दावेदार नहीं, ज़्यादातर वहाँ ऐसे लोग ही तो आते हैं। सुना था, बहुतों से मिलने छह-छह महीने तक कोई नहीं आता है।'

'इसके मतलब आप हमलोगों को उन्हीं के दल में शामिल कर... ' बड़े बेटे का मुँह लाल हो उठा, गले की आवाज़ भारी हो उठी-'इसीलिए हमलोगों से कुछ कहे बिना ही आपने पक्के तौर से इन्तज़ाम कर डाला है।'

'अरे बाबा! बताता तो क्या तुमलोग राज़ी होते? बताया था तुम्हारी माँ को। 'टू रूम' अपार्टमेन्ट की तस्वीर देख राज़ी भी हो गई थीं। पर वह तो... '

एक लम्बी साँस छोड़कर बोले-'उस बुकिंग को कैंसिल करके एक 'सिंगिल'... '

'ओ:? माँ के लिए भी इन्तज़ाम किया था?... और हमें एक बार... '

सोमप्रकाश लेकिन अपने बेटे के अभिमानाहट मुँह की तरफ देखकर यह न कह सके 'निजी व्यवस्था करने के लिए, दूसरों को एक बार बताना चाहिए, क्या इस नियम को तुम लोग जानते हो?'

'न:। नहीं कह सके।

बोले-'मैं ही क्या अकेला आसामी हूँ रे? उन्हीं ने ज़ोर-शोर से घोषणा की थी कि मुझे छोड़कर वह स्वर्ग भी नहीं जायेंगी।'

फिर हँसे-'जबकि देखो। थोड़े दिनों बाद ही-प्रॉमिस भूलकर... मजे से... '

सुनेत्रा बोल उठी-'माँ की क्या अभी चले जाने की इच्छा थी पिताजी? नियति छीन ले गई। पर तुमने कैसे सोच लिया कि हम सब के रहते, तुम जाकर ओल्ड होम में रहोगे?'

'अरे बाबा... वहाँ तो हमउम्र दोस्त मिलेंगे... जितने सब बूढ़े लोग तो वहीं जमा हैं। समझ लो 'ओल्ड क्लब'। भारी गम्भीर चेहरा वहाँ कर बड़ा बेटा बोला-'यह सब कोई काम की बात नहीं हुई पिताजी। जिनका कोई नहीं है, या जिनके लड़के विदेश में रहते है-उनकी बात और है।... लेकिन यहाँ दो दो लड़कों के रहते, इसी कलकत्ते में ही पन्द्रह बीस मील के भीतर, आपका इस तरह से ओल्ड होम में रहना... क्या लोग आपके बेटों के ऊपर थूकेंगे नहीं?'

'ऊपर थूकेंगे?' सोमप्रकाश ज़ोर डालते हुए बोले-'मैंने कहा न कि अपना पुराना चश्मा खोल कर फेंक दो। लोग धीरे-धीरे इसे स्वाभाविक मानने लगेंगे रे...  बल्कि... ' ज़रा हँसकर बोले-'बल्कि जो गायें अभी भी पुरानी गौशाला की मिट्टी से चिपक पड़ी हैं, उन्हीं पर थूकेंगे लोग।'

'प्लीज़ पिताजी, इस तरह से मत कहिए।'

बड़े बेटे के गम्भीर भारी चेहरे की तरफ देखकर लघुस्वरों में वे बोले-'ये देखो...  पगला। मज़ाक नहीं समझा है? असली बात बताऊँ-आज के ज़माने में 'लोगों की निगाहें' बड़ी सहनशील हो गई हैं। अचानक आँखों में धूल-वूल गिर जाती है तो पहले थोड़ा चिल्ला लेते हैं। उसके बाद आँखें बन्द करके शान्ति पा जाते हैं। ... इसके बाद देखोगे ... हमारे देश में भी यह बात एकदम मामूली और स्वाभाविक समझी जाने लगेगी। कारण-इस काल के शिशु भी तो इसी मानसिकता के साथ बड़े हो रहे हैं। वे यह सोचना सीखेंगे ही नहीं कि उनके छोटे से सुन्दर घर के भीतर बदसूरत बूढ़े-बूढ़ी जगह रोके पड़े हैं। और ये भी सोचना न सीखेंगे कि ऐसे ही किसी बूढ़े-बूढ़ी के बिखरे फैले घर में वह भी पल कर बड़े हुए हैं। तब फिर?'

'हूँ! अपनी तरफ से कई दलीले तैयार कर रखी हैं न?'

'तैयार नहीं करना पड़ा है बीमू। दलीलें खुद ही लाइन लगाये आकर खड़ी हो गई हैं। इसके बाद देखना, हर मोहल्ले में कोने-कोने में इस तरह के 'शेषाश्रय' खुल गये हैं। उससे भी जब पूरा नहीं पड़ेगा तब प्रोमोटर आगे आयेंगे-हज़ारों 'शेषाश्रय' बनाने... किसी को आश्चर्य नहीं होगा... बल्कि सभी आश्वस्त होंगे। उनके जान में जान आ जायेगी।'

 

* * *

 

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