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नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा

प्यार का चेहरा

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15403
आईएसबीएन :000

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नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....

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चाचा के संबंध में जितने भी तथ्यों की जानकारी मां को प्राप्त हुई है, वह सब भोला मामा के माध्यम से ही। वहीं जो एक साथ रेलगाड़ी से आने-जाने का सिलसिला चलता तो गहस्थी के कार्यभार से मुक्त हालत में अनवरत बातचीत का दौर चलता रहता है इतना

जरूर है कि अधिकांश समय भोला-दा ही वक्ता की भूमिका निभाता और मां श्रोता की।

कभी-कभी ठीक इसके विपरीत हालत रहती।

“भोला दा के चल बसने से फूलझांटी की खबरों का मेरा दरवाजा बंद हो गया।" चिनु की आंखों में आंसू भर आते हैं।

यह सुनने पर सागर सोचता है, फूलझांटी और वहां के लोग ही मां के प्राण हैं।

बहरहाल, इतने दिनों के बाद मां फिर अपने प्राणों की जगह आयी है। सागर सोचता है।

इसके अलावा यह भी सोचता है कि यहां आते ही उसके पैर में मोच आ गई। उस बूढ़े से जान-पहचान करना संभव नहीं हो रहा है।

अब तक मां के चाचा की महिमा का बखान सागर इतना सुनता रहा है कि मन के अन्दर उसे 'हीरो' बनाकर रखे हुए है।

आने पर जब वह शक्ल देखी तो सागर के सारे उत्साह पर पानी फिर गया। वह भी आदमी के अलावा और कुछ नहीं लग रहा है। उसे 'नाना' कहकर संबोधित करना पड़ेगा?

क्योंकि मां के चाचा को नाना कहकर संबोधित करने का रिवाज है।

मां जब बिलकुल नन्ही-सी बच्ची थीं, उनके पिता चल बसे थे। अपना कोई सगा चाचा नहीं था, उसी चाचा से भरपूर स्नेह और प्यार मिला है उनके प्रति सम्मान प्रकट किए बिना काम चल सकता है?

पांव फैलाकर सागर खिड़की से मुंह टिकाए हुए है। इन लोगों ने भरपूर चूना और हल्दी लगा दी है, इसीलिए बिस्तर की चादर को बचाने की खातिर पांव के नीचे एक अखबार बिछा दिया गया है। वह हल्दी और चूने की बुकनी से बदतर हो गया है। देखने पर अरुचि होती है।

जितनी भी कहानियों की किताबें अपने साथ ले आया था, इन तीन दिनों के दरम्यान उन्हें दो-चार बार पढ़ चुका है। नानी सवेरे आकर काली सिंह के महाभारत का एक भाग दे गई हैं और कहा है, "अकाल के समय भात न मिलने पर लोग जिस तरह अरबी खाकर पेट भरते हैं, उसी तरह पढ़। उसके बाद देखना, पढ़ने का नशा सवार हो जाएगा। कहानी की किताब के अभाव में तू छटपटा रहा था, देखना इसमें कितनी कहानियां हैं। इसके बाद बाकी खंडों को मांग-मांगकर पढ़ेगा।"

नानी को देखने का यह पहला मौका है सागर के लिए।

उनके बारे में जो धारणा थी, उससे कहीं भली लगीं वह। वह इस तरह मजबूत काठी की हट्टी-कट्टी हैं, सागर यह नहीं सोचता था। सागर की मां उनसे कमजोर ही लगती है। थोड़ा-सा परिश्रम करती है तो हांफने लगती है, लेट जाती है।

नानी की मांसपेशियां गठी हुई हैं और वह हर काम में निपुण हैं।

चिनु ने लड़कों को अपनी मां के बहुत सारे गुणों के बारे में बताया है रसोई, सिलाई, कटाई, बरी-आचार बनाने, मरीज की सेवा-सुश्रूषा करने इत्यादि के बारे में। लेकिन वह किताब का कीड़ा हैं, यह कभी नहीं बताया था। अब बोली, “मां, तुम्हारी यह किताब पढ़ने की झोंक बुढ़ापे में कम होने की बजाय बढ़ ही गई है। समझा सागर, किताब पढ़ने की इस बीमारी के चलते मां को दादी से भिड़कियां सुननी पड़ती थीं। लेकिन तुम लोगों की तरह इतनी कहानियों की किताबें कहां मिलेंगी? वही रामायण, महाभारत, पुराण, उपपुराण और दुनियाभर की होमियोपैथी की किताबें पढ़ती रहती हैं...।”

सागर के नाना होमियोपैथी के डॉक्टर थे और उसे अच्छी तरह सीखने की झोंक थी उन्हें।

सागर की मां ने अपने लड़के की किताब के अभाव में छटपटाने की बात गलती से ही बता दी थी।

नानी बोलीं, “कम क्यों होगी? बढ़ना ही उचित है। धीरे-धीरे आंखों की रोशनी कम होती जा रही है। जितने दिन संभव होगा, पढ़ती रहूंगी।"

उसके बाद वह महाभारत दिया था।

सागर ने देखा, खासे बढ़िया ढंग से जिल्द मढ़ा हुआ खंड। पीछे की तरफ नाम लिखा हुआ है श्रीमती मृण्मयी देवी।

नानी का नाम मृण्मयी देवी है, इसकी जानकारी अभी हुई सागर को। अगर पहले सुना भी हो तो याद नहीं है।

पर हां, मृण्मयी देवी की भविष्यवानी कामयाब होगी, ऐसा नहीं लगता। बाप रे! कितनी जटिल भाषा है ! और कौन किसका बेटा है, कौन किसका पिता है, समझने में माथा चकराने लगता है। लेटे-लेटे पढ़ने में भारी भी लगता है।

इससे तो बेहतर यही है कि खिड़की से बाहर की ओर ताका जाए।

सागर की नानी की जमीन से संलग्न ही उस आदमी की जमीन है, जिसे मां ने 'साहब दादू' कहकर संबोधित करने को कहा है।

उसका कारण शायद ताड़ के पत्ते का हैट है।

या पूर्वजीवन में जब वे फूलझांटी आते थे, उस समय उनकी धन-संपत्ति, पोशाक-लिबास, तौर-तरीके और उनके स्त्री-पुत्रों का ठाट-बाट देखकर ही उन्हें यह नाम दिया गया था।

बिनु-चाची उन दिनों एक-दो दिन के लिए आतीं, साथ में नौकरनौकरानी और अदेली लेकर। ठाट-बाट दिखाकर चली जातीं।

उनके नौकर-चाकर उन्हें मेमसाहब कहते, इसी से शायद यह नाम चचत हो गया था। मोटे तौर पर यही कहा जा सकता है कि किसी जमाने के बी० एन० मुखर्जी बाल-भडली में ‘साहब दादू' के नाम से ही जाने जाते हैं।

सागर ने अपने पैर को हल्के से झटका।

इस तरह एक ही जगह पड़े रहना बरदाश्त के बाहर है।

फैलाने पर दर्द का एहसास हुआ।

बोल उठा, “उफ् !” और अचानक पीछे से कोई बोल पड़ा, "टू।' औरतानी आवाज़ है। सागर ने चिहुंककर ताका।

वही लड़की है जिसने सागर वगैरह के आने के दिन स्वागत समिति' का चेयरमैन बन हो हल्ला मचाया था।

हँसकर लोटपोट हो गयी थी और कहा था, "चिनु बुआ, तुम्हारे लड़के ने किसकी हांडी का भात खाया था?"

सागर की रग-रग में गुस्से की लहर दौड़ गयी थी।

दूसरे के घर के आदमी को 'आप' कहकर संबोधित करना चाहिए, यह भी नहीं जानती है। इसके अलावा जिन्दगी में जिसे कभी देखा तक नहीं है, उसके सम्बन्ध में इस तरह कहना !

सागर ने उस दिन जो देखा था उस लड़की को, उसके बाद कभी नजर नहीं पड़ी थी उस पर। सोचा था, जान बची। शायद कहीं दूसरी जगह से आयी थी वह लड़की। अपने स्थान पर चली गई है।

लो, अब फिर परेशान करने पहुंच गई। सागर तनकर बैठ गया और महाभारत खोल उस पर आंखें टिका दीं।

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