लोगों की राय

नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा

प्यार का चेहरा

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : सन्मार्ग प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :102
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 15403
आईएसबीएन :000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....

4

मंत्री महोदय ने चाचा से अनुरोध किया कि इस मामले को किसी तरह दबा दिया जाए। कहने का मतलब था कि सारी बातों पर

लीपापोती कर ऐलान कर दें कि गलती से इस तरह का मामला उठ खड़ा हुआ था।

चाचा बोले, "ऐसा करना नामुमकिन है।”

उन लोगों ने कहा, "बात सही हो तो भी मंत्री के दामाद को कठघरे में खड़ा नहीं कराया जा सकता है। ऐसा करना संभव नहीं है।'

चाचा बोले, “तो फिर जो संभव है वही करना होगा।"

"बस, इतना बड़ा पोस्ट, इतनी बड़ी तनख्वाह की नौकरी छोड़कर फूलझांटी चले आए। बोले, खेती-बाड़ी करूंगा।”

यह कहकर सागर की मां लड़कों की ओर ताककर उल्लास भरे स्वर में कहती, “तुम लोगों की पाठ्य-पुस्तक में रवीन्द्रनाथ की वह जो कविता है : 'मैं भी दण्ड त्याग रहा हूं अब तो, लौट रहा हूं अपने घर को न्यायालय के खेलघर में अब न रहूंगा अवरुद्ध। ठीक ऐसी ही है न? अन्तिम पंक्तियां याद हैं-'त्याग चला गया गौरव का पद, दूर फेंक सम्पदा सारी, गांव की कुटिया में चला गया दीन-दरिद्र वह विप्र।'....बिनू चाचा के बारे में सोचते ही मुझे उस कविता की याद आ जाती है जानता है, सरकारी पेंशन तक स्वीकार नहीं की। कार्यकाल पूरा न होने पर भी यदि त्यागपत्र दे दे तो कुछ-न-कुछ पेंशन दी जाती है, लेकिन उच्च अधिकारी ने उन्हें न तो वक्तव्य देने दिया और न जाहिर ही होने दिया कि उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया है। बताया कि अस्वस्थ रहने के कारण छोड़ रहे हैं। ऐसी हालत में पेंशन देने का नियम है। मगर चाचा ने कहा, फटे हुए जूते पांव से उतारकर फेंक देने के बाद क्या उसका हाफसोल इस मकसद से उठाकर रख लें कि काम में आएगा?"  

मां और भी उल्लास भरे स्वर में कहती, “मगर दुनिया के लोग क्या इसे पराक्रम का महत्व समझते हैं? नहीं, समझते नहीं। बिनू चाची अपने पति की इन दो प्रकार की बेवकूफी से आग-बबूला हो चाचा से नाता तोड़कर अपने दो लड़कों के साथ मायके चली गईं। इतना जरूर है कि लड़के तब छोटे थे। चाची के पिताजी एक बड़े पुलिस अफसर हैं। बड़ा भाई भी पुलिस की नौकरी में है। दुनिया की जितनी भी काली करतूतें और भ्रष्टाचार हैं, उन लोगों के लिए कोई मानी नहीं रखते। चाची जानती हैं, वे सब आम वारदातें हैं। हाथ में ताकत रहेगी तो लोग मौके से लाभ उठाएंगे, उस ताकत को अमल में लाएंगे। यही आदमी का निजी धर्म हैं। ऐसे लोगों से तालमेल बिठाकर ही समाज में रहना है। क्योंकि ऐसे ही लोग समाज के सिरमौर हैं। तुम सोचोगे मैं एक महान् व्यक्ति हूं, मगर लोग-बाग ऐसा नहीं कहेंगे। कहेंगे, गंवार, मूर्ख और सूझबूझ से कोसों दूर रहने वाला आदमी है। तुम अपनी महिमा को अक्षुण्ण रखोगे, यही क्या सबसे बड़ी बात है? पत्नी और पुत्र के प्रति कोई कर्तव्य नहीं है?”

इस पर चाचा बोले, “पत्नी और बच्चे मेरी ही तरह रहेंगे। जब उच्च पद पर आसीन हो मुखर्जी साहब होकर घूमता-फिरता था, उस समय तो पति के सब कुछ के साझीदार थीं। अभी यदि पति की हालत में हेर-फेर आता है तो उसी के अनुसार चलना है। पत्नी क्या सिर्फ सुख-सुविधा की ही भागीदार होती है? गरीबी की नहीं? सुख की ही संगिनी होती है? दुःख की नहीं?'...इसके बाद तुम लोग सुनोगे तो अवाक् रह जाओगे। चाची ने दस्यु रत्नाकर की कहानी से नजीर पेश करते हुए कहा था, 'यही होता है। पत्नी-पुत्र, मां-बाप कोई भी दुर्बुद्धि और दुर्मति के फलाफल का भागीदार नहीं होता।

सो उन्होंने उस भाग को स्वीकार नहीं किया।

तभी से मायके में रह रही हैं।

बच्चे बड़े हो चुके हैं। बड़ा लड़का अपने मामा और नाना की पैरवी के कारण पुलिस विभाग के उच्च पदाधिकारी की नौकरी पर आसीन हो चुका है। अब चाची भला यहां क्यों आने लगी?

सागर ने अवाक् होकर कहा था, "उन लोगों में फिर कभी मेलजोल नहीं हुआ?"

मां ने हंसकर कहा था, "नहीं। फिर कभी मेल-जोल नहीं हुआ।"

सागर उन दिनों आठवें वर्ग का छात्र था।

सागर मां की गोद के पास खिसक आया था और कहा था, "तुम कर सकती हो, मां?

सुनकर मां अवाक् हो गई थी, “क्या?"

“उस तरह एकाएक बाबूजी से मेल-जोल का रिश्ता तोड़ हमेशा-हमेशा के लिए दूसरी जगह जाकर रह सकती हो?"

मां ने कहा था, "दुर्गा-दुर्गा ! यह भी कोई बात है ! मजाक के तौर पर भी ऐसा नहीं कहना चाहिए, बेटा। मैं भला ऐसा काम क्यों करूंगी?"

चाचा ने अलबत्ता कई बार पत्नी और लड़कों से अपने गांव आने की बात कही थी, इस पर चाची बोली थी, "एब्सर्ड !"

लड़कों ने कहा था, "जहां बिजली नहीं है वहां आदमी कैसे वास कर सकता है, यह हमारी समझ के बाहर की चीज़ है। इसके अलावा लिखाई-पढ़ाई का क्या होगा? आदमी के लायक स्कूल कहां है?”

चाचा ने कहा था, “फूलझांटी के स्कूल में ही लिख-पढ़कर मैं इंसान बना हूं।"

चाची ने कहा था, "इंसान? तुम अलबत्ता यह सोचकर मजे में हो पर सभी ऐसा नहीं सोचते।"

चाची तो सबसे अलग किस्म की नहीं हैं। चुनांचे लोग-बाग जो नहीं सोचते, वह भी वैसा कुछ नहीं सोचती हैं। सभी जो कुछ सोचते हैं, उनका भी वहीं सोच है।

इतना जरूर है कि अब फूलझांटी में भी बिजली आ गई है क्योंकि आस-पास कहीं तरह-तरह के कारखाने खुल गए हैं। लेकिन क्या हर घर में बिजली है?...नहीं, सो कैसे होगी? जो खर्च कर ले सकता है, उसी के घर में आएगी। गांव के तमाम लोग क्या इतना खर्च कर सकते हैं? वे लोग इस इन्तजार में हैं कि आस-पास हो कहीं बिजली का खंभा गाड़ा जाएगा, उस वक्त देखा जाएगा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai