नारी विमर्श >> प्यार का चेहरा प्यार का चेहराआशापूर्णा देवी
|
0 5 पाठक हैं |
नारी के जीवन पर केन्द्रित उपन्यास....
33
साहब दादू ने हालांकि कहा था, भागे-भागे मत घूमना, लतू से स्वाभाविक तौर पर मिलते-जुलते रहना, बातचीत करते रहना; लेकिन सागर वह साहस बटोर नहीं सका था।
सागर ने अपने मन को तिरछी निगाहों से देखा था, मैं तो भागाभागा नहीं चल रहा हूं, एवॉयड भो नहीं कर रहा हूं, मुलाकात नहीं होती है तो क्या करूं? घर जाकर तलाश करूं? इसमें बहुत सारे झमेले हैं। उस दिन उसके घर के पास से होकर जा रहा था, उसके चाचा ने, 'तुम ही चिनु दी के छोटे लड़के हो?' कहकर यों ताका, कि छाती का खून बर्फ के मानिन्द ठंडा हो गया।
मां के मायके के गांव में आते ही कैसा तो एक किस्म का भय समा गया है। भय से सीने में घुन लगता जा रहा है।
भय का मतलब साहस की कमी।
लतू की तलाश कर स्वाभाविक होने का साहस नहीं हुआ था। सागर को।...लेकिन अभी एकाएक प्लेटफार्म के किनारे चंपा के पेड़ के तले लतू को एकाकी देख सागर की उमंगों के सागर में ज्वार उठने लगे।
सागर बोला, "अभी तुरन्त घर चली जाओगी?"
"नहीं, इच्छा नहीं हो रही। आ, चलकर उस पेड़ के नीचे बैठे। सीमेंट की खासी अच्छी बैठने लायक जगह है।”
सागर स्वयं को कृतार्थ समझता है।
सागर आंख उठाकर देखता है।
फिर भी सागर बगैर कहे रह नहीं पाता है, “देर होने से घर पर डांट नहीं सुननी पड़ेगी?"
"डांटने दो। डांट-डपट के भय से तू केंचुआ-जोंक की तरह सिकुड़कर जीवन जिएगा तो क्या डांट-फटकार के हाथ से छुटकारा पा जाएगा?...नहीं, तेरे बारे में नहीं कह रही हूं, तुम लड़कों के तो सात खून माफ। मूंछे उगते ही किसी को डांटने का साहस नहीं होता। जितनी परेशानी है, सब लड़कियों के लिए ही। मैंने सोच रखा है, जितना बकना है बको। हां, मैं कोई अन्याय या बुरा काम नहीं करूंगी।"
सागर फटी-फटी आवाज में कहता है, "मैं उस दिन बहुत ही बुरा काम कर बैठा।''
“सो किया था।"
लतू ने उदासी के साथ कहा। सागर का चेहरा मुरझाकर सफेद हो जाता है।
सागर मन की चंचलता को संयत करने के ख़याल से उंगलियां चटकाना शुरू कर देता है।
लतू चंद लमहों के बाद कहती हैं, 'तेरा वह भाग जाना बहुत ही बुरी हुरकत था। मैंने क्या तेरे गाल पर चटाक से तमाचा जड़ दिया था? धक्का देकर गिरा दिया था?
सागर और जोर से उंगलियां चटकाने लगता है।
लतू उसका हाथ खींच अपने हाथ में दबाकर कहती है, “उंगलियां मत चटका, कोई देखेगा तो कहेगा कि तू किसी को शाप दे रहा है। अरे, तेरी उंगलियां कांप रही हैं।"
"लतू, तुम मेरा हाथ मत पकड़ो।”
"क्यों?"
"मुझे कैसी-कैसा तो लगता है डर लगता है। कहीं उसी दिन की तरह..."
लतू उसका हाथ और भी कसकर दबाए रहती है, “इस खुले प्लेटफार्म पर उसी दिन की तरह ‘लतू, मैं तुम्हें प्यार करता हूं, कहकर बांहों में भर लेगा तो पुलिस तुझे पकड़कर ले जाएगी !'' 'तू इतना-सा लड़का है, तू इतना क्यों? प्यार करता है तो अच्छी ही बात है, दीदी कहकर प्यार नहीं कर सकता?"
सागर जबरन हाथ छुड़ाकर उद्धत स्वर में कहता है, "नहीं। तुम मुझसे कुल मिलाकर आठ महीने ही बड़ी हो।”
इसका मतलब यह कि तू मुझसे सिर्फ आठ महीने छोटा है। मैं तो खुद को तेरी दीदी के रूप में ही सोचती हैं।"
सागर दूसरी ओर ताकता रहता है, बातें नहीं करता।
लतू जरा हंसकर कल्लती है, "ओह, हजरत के सम्मान को धक्का पहुंचा हैं। फिर बताती हूं सागर, उसी दिन कहती, कहने की ही खातिर नींबू के तले ले जाकर बैठी थी। लेकिन तूने सब कुछ पर पानी फेर दिया। तुझे प्यार करना मुझे इतना अच्छा इसलिए लगता। है कि तू प्रवाल दा का भाई है।"
सागर चिहुंककर ताकता है।
सागर का चेहरा बेवकूफ जैसा दिखने लगता है।
लतू सामने की निर्जन रेल लाइन की तरफ ताकते हुए अन्यमनस्क स्वर में कहती हैं, "उस दिन मां काली से क्या मनौती करने गई थी, जानता है? यही कि प्रवाल दा मुझसे जरा सलीके से बातचीत करे।"
सागर के होंठ थरथराने लगते हैं।
सागर की अंगुलियां फिर कांपने लगती हैं।
ऐसी स्थिति में भी सागर अपना हाथ बढ़ाकर खुद ही लतू का हाथ कराकर दबाता है और बोल उठता है, "लतू दी !”
खैर, बात तेरी समझ में आ गई।
लतू बोली, “खैर, अब समझ गया तू।”
लतू बोली, "ओछे की तरह प्यार की बातें ही सीखी हैं तूने, पर प्यार का चेहरा पहचानना नहीं सीखा। तुझे यदि अक्ल होती तो पहले दिन ही समझ जाता।
"मैं समझ नहीं सका था, सचमुच ही नहीं समझ सका था, लतू दी!”
"अब तो समझ गया न?”
|