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शिवपुराण भाग-1

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :832
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 14
आईएसबीएन :0

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शिवपुराण सरल हिन्दी भाषा में पढ़ें


कार्तिक मास में देवताओं का यजन-पूजन समस्त भोगों को देनेवाला, व्याधियों को हर लेनेवाला तथा भूतों और ग्रहों का विनाश करनेवाला है। कार्तिक मास के रविवारों को भगवान् सूर्य की पूजा करने और तेल तथा सूती वस्त्र देने से मनुष्यों के कोढ़ आदि रोगों का नाश होता है। हींग, काली मिर्च, वस्त्र और खीरा आदि का दान और ब्राह्मणों की प्रतिष्ठा करने से क्षय के रोग का नाश होता है। दीप और सरसों के दान से मिरगी का रोग मिट जाता है। कृत्तिका नक्षत्र से युक्त सोमवारों को किया हुआ शिवजी का पूजन मनुष्यों के महान् दारिद्र्य को मिटानेवाला और सम्पूर्ण सम्पत्तियों को देनेवाला है। घर की आवश्यक सामग्रियों के साथ गृह और क्षेत्र आदि का दान करने से भी उक्त फल की प्राप्ति होती है। कृत्तिका युक्त मंगलवारों को श्रीस्कन्द का पूजन करने से तथा दीपक एवं घण्टा आदि का दान देने से मनुष्यों को शीघ्र ही वाक् सिद्धि प्राप्त हो जाती है, उनके मुँह से निकली हुई हर एक बात सत्य होती है। कृत्तिकायुक्त बुधवारों को किया हुआ श्रीविष्णु का यजन तथा दही-भात का दान मनुष्यों को उत्तम संतान की प्राप्ति करानेवाला होता है। कृत्तिकायुक्त गुरुवारों को धन से ब्रह्माजी का पूजन तथा मधु, सोना और घी का दान करने से मनुष्यों के भोग-वैभव की वृद्धि होती है। कृत्तिकायुक्त शुक्रवारों को गजानन गणेशजी (यही मूल में 'गजकोमेड' शब्द आया है जिसका पूर्ववर्ती व्याख्याकारों ने 'गणेश' अर्थ किया है। सम्भवतः 'कोमेड' शब्द का प्रयोग यहाँ मस्तक या मुख के अर्थमें आया है। ) की पूजा करने से तथा गन्ध, पुष्य एवं अन्न का दान देने से मानवों के भोग्य पदार्थों की वृद्धि होती है। उस दिन सोना, चाँदी आदि का दान करने से बन्ध्या को भी उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है। कृत्तिकायुक्त शनिवारों को दिक्पालों की वन्दना, दिग्गजों, नागों और सेतुपालों का पूजन, त्रिनेत्रधारी रुद्र, पापहारी विष्णु तथा ज्ञानदाता ब्रह्मा का आराधन और धन्वन्तरि एवं दोनों अश्विनीकुमारों का पूजन करने से रोग, दुर्मृत्यु एवं अकालमृत्यु का निवारण होता है तथा तात्कालिक व्याधियों की शान्ति हो जाती है। नमक, लोहा, तेल और उड़द आदि का त्रिकटु (सोंठ, पीपल और गोल मिर्च), फल, गन्ध और जल आदि का तथा घृत आदि द्रव-पदार्थों का और सुवर्ण, मोती आदि कठोर वस्तुओं का भी दान देने से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इनमें से नमक आदि का मान कम-से-कम एक प्रस्थ  (सेर) होना चाहिये और सुवर्ण आदि का मान कम-से-कम एक पल।

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