ई-पुस्तकें >> शिवपुराण भाग-1 शिवपुराण भाग-1हनुमानप्रसाद पोद्दार
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शिवपुराण सरल हिन्दी भाषा में पढ़ें
विद्वान् ब्राह्मणो! सूर्य-संक्रान्ति के दिन किया हुआ सत्कर्म पूर्वोक्त शुद्ध दिन की अपेक्षा दसगुना फल देनेवाला होता है, यह जानना चाहिये। उससे भी दसगुना महत्त्व उस कर्म का है, जो विषुव नामक योग में किया जाता है। (ज्योतिष के अनुसार वह समय जब कि सूर्य विषुव रेखा पर पहुंचता है और दिन तथा रात दोनों बराबर होते हैं वर्ष में दो बार आता है - एक तो सौर चैत्रमास की नवमी तिथि या अग्रेजी २१ मार्च को और दूसरा सौर आश्विन की नवमी तिथि या अंग्रेजी २२ सितम्बरको। )
दक्षिणायन आरम्भ होने के दिन अर्थात् कर्क की संक्रान्ति में किये हुए पुण्यकर्म का महत्त्व विषुव से भी दसगुना माना गया है। उससे भी दसगुना मकर-संक्रान्ति में और उससे भी दसगुना चन्द्रग्रहण में किये हुए पुण्य का महत्त्व है। सूर्यग्रहण का समय सबसे उत्तम है। उसमें किये गये पुण्यकर्म का फल चन्द्रग्रहण से भी अधिक और पूर्णमात्रा में होता है, इस बातको विज्ञ पुरुष जानते हैं। जगत् रूपी सूर्य का राहुरूपी विष से संयोग होता है, इसलिये सूर्यग्रहण का समय रोग प्रदान करनेवाला है। अत: उस विष की शान्ति के लिये उस समय स्नान, दान और जप करे। वह काल विष की शान्ति के लिये उपयोगी होने के कारण पुण्यप्रद माना गया है। जन्मनक्षत्र के दिन तथा व्रत की पूर्ति के दिन का समय सूर्यग्रहण के समान ही समझा जाता है। परंतु महापुरुषों के संग का काल करोड़ों सूर्यग्रहण के समान पावन है ऐसा ज्ञानी पुरुष जानते-मानते हैं।
तपोनिष्ठ योगी और ज्ञाननिष्ठ यति- ये पूजा के पात्र हैं क्योंकि ये पापों के नाशमें कारण होते हैं। जिसने चौबीस लाख गायत्री का जप कर लिया हो, वह ब्राह्मण भी पूजा का उत्तम पात्र है। वह सम्पूर्ण फलों और भोगों को देनेमें समर्थ है। जो पतन से त्राण करता अर्थात् नरक में गिरनेसे बचाता है उसके लिये इसी गुणके कारण शास्त्र में 'पात्र' शब्दका प्रयोग होता है। वह दाता का पातक से त्राण करने के कारण 'पात्र' कहलाता है।
पतनात्त्रायत इति पात्रं शास्त्रे प्रयुज्यते।
दातुश्च पातकात्त्राणात्पात्रमित्यभिधीयते।।
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