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शिवपुराण भाग-1

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :832
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 14
आईएसबीएन :0

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शिवपुराण सरल हिन्दी भाषा में पढ़ें


जो मनुष्य भगवान् शिव के लिये फुलवाड़ी या बगीचे आदि लगाता है तथा शिव के सेवाकार्य के लिये मन्दिर में झाड़ने- बुहारने आदि की व्यवस्था करता है, वह इस पुण्यकर्म को करके शिवपद प्राप्त कर लेता है। भगवान् शिव के जो काशी आदि क्षेत्र हैं, उनमें भक्तिपूर्वक नित्य निवास करे। वह जड़, चेतन सभी को भोग और मोक्ष देनेवाला होता है। अत: विद्वान् पुरुष को भगवान् शिव के क्षेत्र में आमरण निवास करना चाहिये। पुण्यक्षेत्र में स्थित बावड़ी, कुआँ और पोखरे आदि को शिवगंगा समझना चाहिये। भगवान् शिव का ऐसा ही वचन है। वहाँ स्नान, दान और जप करके मनुष्य भगवान् शिव को प्राप्त कर लेता है। अत. मृत्युपर्यन्त शिव के क्षेत्र का आश्रय लेकर रहना चाहिये। जो शिव के क्षेत्र में अपने किसी मृत सम्बन्धी का दाह, दशाह, मासिक श्राद्ध, सपिण्डीकरण अथवा वार्षिक श्राद्ध करता है अथवा कभी भी शिव के क्षेत्र में अपने पितरों को पिण्ड देता है, वह तत्काल सब पापों से मुक्त हो जाता और अन्त में शिवपद पाता है। अथवा शिव के क्षेत्र में सात, पाँच, तीन या एक ही रात निवास कर ले। ऐसा करने से भी क्रमश: शिवपद की प्राप्ति होती है।

लोक में अपने-अपने वर्ण के अनुरूप सदाचार का पालन करने से भी मनुष्य शिवपद को प्राप्त कर लेता है। वर्णानुकूल आचरण से तथा भक्तिभाव से वह अपने सत्कर्म का अतिशय फल पाता है, कामना- पूर्वक किये हुए अपने कर्म के अभीष्ट फल को शीघ्र ही पा लेता है। निष्कामभाव से किया हुआ सारा कर्म साक्षात् शिवपद की प्राप्ति करनेवाला होता है।

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