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शिव पुराण भाग-1

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :832
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 14
आईएसबीएन :0

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शिवपुराण सरल हिन्दी भाषा में पढ़ें

अध्याय २३-२४

 

शिवनाम-जप तथा भस्मधारण की महिमा, त्रिपुण्ड्र के देवता और स्थान आदि का प्रतिपादन


ऋषि बोले- महाभाग व्यासशिष्य सूतजी! आपको नमस्कार है। अब आप उस परम उत्तम भस्म-माहात्म्य का ही वर्णन कीजिये। भस्म-माहात्म्य, रुद्राक्ष-माहात्म्य तथा उत्तम नाम-माहात्म्य - इन तीनों का परम प्रसन्नतापूर्वक प्रतिपादन कीजिये और हमारे हृदय को आनन्द दीजिये।

सूतजी ने कहा- महर्षियो! आपने बहुत उत्तम बात पूछी है। यह समस्त लोकों के लिये हितकारक विषय है। जो लोग भगवान् शिव की उपासना करते हैं वे धन्य हैं कृतार्थ हैं; उनका देहधारण सफल है तथा उनके समस्त कुल का उद्धार हो गया। जिनके मुख में भगवान् शिव का नाम है जो अपने मुख से सदाशिव और शिव इत्यादि नामों का उच्चारण करते रहते हैं पाप उनका उसी तरह स्पर्श नहीं करते, जैसे खदिर-वृक्ष के अंगार को छूने का साहस कोई भी प्राणी नहीं कर सकते। 'हे श्रीशिव! आपको नमस्कार है ' (श्रीशिवाय नमस्तुभ्यम्) ऐसी बात जब मुँह से निकलती है तब वह मुख समस्त पापों का विनाश करनेवाला पावन तीर्थ बन जाता है। जो मनुष्य प्रसन्नतापूर्वक उस मुख का दर्शन करता है उसे निश्चय ही तीर्थसेवनजनित फल प्राप्त होता है। ब्राह्मणो! शिव का नाम, विभूति  (भस्म) तथा रुद्राक्ष - ये तीनों त्रिवेणी के समान परम पुण्यमय माने गये हैं। जहाँ ये तीनों शुभतर वस्तुएँ सर्वदा रहती हैं, उसके दर्शनमात्र से मनुष्य त्रिवेणी-स्नान का फल पा लेता है। भगवान् शिव का नाम 'गंगा' है विभूति 'यमुना' मानी गयी है तथा रुद्राक्ष को सरस्वती कहा गया है। इन तीनों की संयुक्त त्रिवेणी समस्त पापों का नाश करनेवाली है। श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इन तीनों की महिमा को सदसद्विलक्षण भगवान् महेश्वर के बिना दूसरा कौन भलीभाँति जानता है। इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ है वह सब तो केवल महेश्वर ही जानते हैं।

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