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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाने की विधि
कर्मवाच्य में कर्ता को प्रधानता नहीं दी जाती है अतएव उसे गौण स्थान मिलता
है। यह गौणता दो प्रकार से हो सकती है—
(क1) कर्ता को करण या माध्यम के रूप में से, के द्वारा,
द्वारा आदि लगाकर व्यक्ति किया जाए। या (क2) कर्ता
का लोप ही कर दिया जाए। रमेश से अब दूध पिया नहीं जा रहा है। में रमेश के साथ
परसर्ग से लगाकर उसे कर्ता की भूमिका से दूर कर दिया गया है, और
“पतंग बहुत अच्छी तरह उड़ रही है।” में पतंग उड़ाने वाले का उल्लेख तक नहीं
है।
(ख1) इसके अतिरिक्त कर्मवाच्य बनाते समय संयोजी क्रिया जाना का प्रयोग किया
जाता है और जाना के पूर्व मुख्य क्रिया का पूर्णकृदंती रूप — आ — ई — ए — ई
आता है जैसे कि दूध पिया नहीं जा रहा है। दवाई दे गई है।
2. कर्तृवाच्य में प्रयुक्त मूल सकर्मक के व्युत्पन्न अकर्मक का प्रयोग किया
जाता है, जैसे— पतंग उड़ रही है।
रमेश अब दूध पी नहीं रहा है → रमेश से (क)(1) द्वारा + अब + दूध (कर्म) +
पीना मुख्य क्रिया (कर्तृवाच्य,+जा (=पिया जा) + रहा है। = रमेश से अब दूध
पिया (नहीं) जा रहा है।
(मोहन) पतंग उड़ा रहा है → मोहन का लोप (क) 2. द्वारा + मूल सकर्मक उड़ाना का
व्यत्पन्न अकर्मक रूप (ख) 2. द्वारा + रही है। = पतंग उड़ रही है।
कर्तृवाच्य से भाव वाच्य बनाने की विधि—
भाव वाच्य से कर्म होता ही नहीं है। मूलकर्ता की दो स्थितियाँ होती हैं—
(क) 1. उसके आगे से आदि लगता है, 2. उसका उल्लेख ही नहीं होता है। उल्लेख न
होने की स्थिति तब होती है जब मूल कर्ता जन सामान्य (लोग) हो। और मुख्य
क्रिया के पूर्णकृदंती क्रमों के बाद संयोजी क्रिया √ जा लगती है।
मैं अब चल नहीं पाता → मैं → मुझ से + अब + (चला (नहीं) + जा) ता
गर्मियों में लोग खूब नहाते हैं → गर्मियों में (लोग → लोगों से → लोह) + खूब
+ (नहा — या + √ जा) ता है।
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