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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
काल
क्रिया या घटना कि समय हुई, इसको बताने का दायित्व काल
का है; और समयवायी काल तीन होते हैं— वर्तमान, भूत और भविष्य। किंतु
व्याकरणिक अर्थ की दृष्टि से काल कथन के क्षण और क्रिया, घटना करने/होने
के क्षण का समयपरक संबंध है। यह संबंध तीन प्रकार का होता है:
1. वर्तमान: कथन के क्षण के साथ-साथ क्रिया व्यापार का
होना:
2. भूत: कथन के क्षण के पूर्व क्रिया व्यापार का
होना।
3. भविष्य: कथन के क्षण के बाद क्रिया व्यापार का
होना।
उदाहरण क्रमशः हैं— मोहन पढ़ रहा है/ मोहन कल दिल्ली गया था/ मोहन अगले वर्ष
अमेरिका जायेगा।
ऊपर दिए सोलह रूपावली वर्ग के शीर्षकों के मूल रूप में संयुक्त रूप से काल
और वृत्ति/अर्थ हैं। नीचे चार्ट में इन्हें स्पष्ट किया जा रहा है:
वर्तमान | भूत | भविष्यत् | |
निश्चयार्थ | सामान्य वर्तमान (7) | सामान्य भूत (6) | सामान्य भविष्यत् (2) |
पूर्ण वर्तमान (8) | अपूर्ण भूत (9) | ||
पूर्ण भूत (10) | |||
विधि - अर्थ | प्रत्यक्ष विधि (3) | परोक्ष विधि (4) | |
संभावनार्थ | संभाज्य वर्तमान (12) | संभाव्य भूत (12) | संभाव्य विषय (1) |
संदिग्धार्थ | संदिग्ध वर्तमान (13) | संदिग्ध भूत (14) | |
सामान्य संकेतार्थ (5) | |||
अपूर्ण संकेतार्थ (15) | |||
पूर्ण संकेतार्थ (16) |
टिप्पणी: अभी आया में रूपावली काल सामान्य भूत है
किंतु क्रिया भविष्यकाल में संपन्न होने जा रही है, या वह कल लखनऊ जा
रहा है में रूप रचना की दृष्टि से वर्तमान है, जबकि क्रिया भावी समय
में होगी।
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