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हिंदी के व्याकरण को अघिक गहराई तक समझने के लिए उपयोगी पुस्तक
युग्म और पुनरुक्त शब्द
यौगिकों का एक भेद युग्मी रचना से उत्पन्न युग्मकों का है।
युग्म शब्दों के तीन भेद हैं —
(1) आपस में मिले, पर्याय/पर्यायवत् शब्द।
(2) विरोधार्थी (विलोम/विपर्यय) शब्द।
(3) सार्थक + निर्थक या निरर्थक + निरर्थक शब्द।
(1) समानार्थी युग्म | बाल-बच्चे, बड़े-बूढ़े, काम-काज, जान-पहचान, देख-भाल, सीधा-सादा, मोटा-ताजा, नहा-धोकर, सुना-सुनाया, जैसे-तैसे आदि। |
(2) विरोधार्थी युग्म | लेन-देन, सुख-दुःख, पाप-पुण्य, जीवन-मरण, थोड़ा-बहुत, आना-जाना, इधर-उधर, दिन-रात, भला-बुरा आदि। |
(3) निरर्थक पद | पूछ-ताछ, आस-पास, आमने-सामने, अता-पता, कागज-वागज, मिठाई-विठाई, अनाप-सनाप, अंट-संट आदि। |
पुनरुक्त शब्द में एक ही शब्द दो बार आता है, जैसे घर-घर, नए-नए, आते-आते,
हाय-हाय, अरे-अरे, कहीं-कहीं आदि। संस्कृत में भी ऐसी रचनाएँ थीं दिने दिने,
वने वने आदि। पुनरुक्त शब्दों में भिन्न-भिन अर्थ निकलते हैं। प्रमुख हैं —
प्रत्येक का भाव | वह घर-घर जाकर सूचना इकठ्ठा कर रहा है। (प्रत्येक घर) |
भिन्नता | देश-देश के लोग (भिन्न देशों के लोग) नए-नए खेल (भिन्न-भिन्न नये खेल) |
अतिशयता (बहुत अधिक आदि) | हँसी-हँसी में (बहुत अधिक हँसी में), ऊँचे-उचे मकान (बहुत अधिक ऊँचे मकान) |
एकजातीयता (एक-सा होना) | छोटे-छोट व्यापार (सभी छोटे हैं) पके-पके फल (सभी पके हैं)। |
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