लोगों की राय

श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 1220
आईएसबीएन :

Like this Hindi book 0

मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


मैं एक रोज बीत जाने का इन्तजार करने लगा कि कब दूसरा दिन आये जैसे ही रात से सुबह हुई और सुबह से दोपहर तो मैं तैयार होकर सीधे शौच के अड्डे पर पहुंचा था कि वह औरत पहले से ही मेरे इन्तजार में खिड़की पर खड़ी थी।
उसने मुझे तुरन्त अपने पास बुलाने का इशारा किया तो मैं उसके पास चला गया। उन्होंने घर के अन्दर बुलाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। मैं सोच रहा था कि आगे क्या होता है!
उन्होंने वह मुझे हँसते हुये अन्दर आने को कहा तो मैं शिष्टाचारवश उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। वह सीधे अपने कमरे में ले गई पहले मुझे पलंग पर बैठाई और वह हँसते बोली सुरेश तुम आज आराम से बैठो।
आज तुम्हें वो मजा आयेगा कि तुमने आज तक कभी नहीं लिया होगा। आज तुम्हारी नूनी और बाकी सब क्या है उसे ठीक से समझते हैं। आज कोई जल्दी नहीं है क्योंकि आज मेरी बेटी सोनम घर में नहीं है और शाम से पहले आयेगी भी नहीं।
मैं समझ गया कि चलो ठीक है, डर भी नहीं होगा कि कोई आ जायेगा। मैं उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। उसके पीछे चलते हुए मेरा ध्यान उसके पिछवाड़े पर पड़ा। उसने हल्के रंग की कोई झिरी वाले कपड़े की साड़ी पहनी हुई थी। को देखकर मेरी नूनी तपाक् से मचल कर नूना बनने की फिराक में लग गई!
वह बोली–मैं तुम्हारे लिए एक विशेष चाय बना कर लाती हूँ। उसके बाद वह अंदर किसी कमरे में चली गई। मैं बाहर ही बैठा रहा।
उसे आने में लगभग दस मिनट बीता ही होगा कि इसके बीच हम अपनी नूनी को बड़े प्यार से सहला कर हाथ से मसल रहे थे वह जैसे ही हमारे पास आई तो उसके हाथ में दो प्याली चाय थी वह मुझे चाय पीने को बोली। इस चाय में दूध तो नहीं था। पर कुछ-कुछ मसाले और काढ़ा जैसी थी।
और वह भी हमारे साथ-साथ चाय पीने लगी। उसे देख कर मेरा मन बुरी तरह मचल उठा, क्योंकि इस समय जब आई तो वह नीचे से ऊपर तक नंगी नजर आ रही थी। कपड़े के नाम पर सिर्फ एक पतली भीनी सी सफेद रंग की एक मैक्सी से उसका बदन ढँका हुआ था।
मैं उसे देखकर ऊपर से नीचे तक गन्न! उत्कण्ठा में मैं जल्दी-जल्दी चाय पीने लगा। चाय पीने के दौरान वह हँसती हुई बोली सुरेश आज तुमको इतना मज़ा दूँगी की तुम सोच भी नहीं सकते हो।
मैं तो इतना समझता था कि वह मेरे नूनी को जरूर छुएगी। पर आगे क्या करेगी मैं वो सब नहीं जानता कि इतनी बड़ी औरत मुझ जैसे लड़के के साथ क्या करेगी।
अपनी चाय खत्म करके वह बोली–सुरेश तुम्हारी नूनी तो पहले से ही एकदम खड़ी है। बल्कि बाहर निकलने को आतुर है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book