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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 1220
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


यह सब बातें मेरे मन को विचलित करने लगी और मैं डरते-डरते उसके दरवाजे के पास गया।
मैं उसके पास अपराधी की तरह खड़ा था उस औरत ने मुझे पहले थोड़ा गुस्से से पूछा –तुम्हें शर्म नहीं आती है रोज-रोज किसी के घर के सामने शौच करने आते हो।
मैं अपराधी की तरह कहने लगा–गलती हो गई, अब से मैं यहां पर शौच नहीं करूँगा...।
इतने में वह कुछ शांत होकर बोली–देखो अब से शौच करना हो तो किसी दूसरे स्थान को बदल लो। तुम शौच करते हो और तुम्हारी दूसरी हरकत मुझे पसंद नहीं।
जब यह बात वह बोली तो मुझे समझ में नहीं आया कि मैं क्या हरकत करता हूँ।
मैंने कहा–मुझसे कौन सी गलती हो गई जो कि आप मुझे कह रही हैं। यह बात कहती वह औरत कुछ इस तरह से बोली की जैसे वह मेरे उपर दया दृष्टि कर रही हैं। वह बोली की तुम हमेशा अपने नूनी को तन कर अपने से क्यों मसलते रहते हो। यह बात उसने ज्यों ही कही, तो मैं शर्म से गड़ गया।
और मैं उस समय शर्म के मारे अपनी नजर नीचे कर अपराधी की तरह खड़ा होकर कहने लगा। अब मैं ऐसा नहीं करूंगा।
यह सब बातों से मुझे डर हो गया था। डर इस बात का था कि वह औरत हमसे उम्र में काफी बड़ी हैं और मैं उसके सामने नादान बच्चे जैसा हूँ।
जब मैं उसके सामने अपराधी की तरह खड़ा था तो वह मुझे डांटते हुए कहने लगी–देखो यह सब करना बुरी बात है।
जब मैं वहां से जाने को सोचने लगा तो उसने मुझे रुकने को कहा। मैं रुका तो वह मुझे समझाने लगी कि तुम अभी बच्चे हो तुम्हें इस तरह नहीं करना चाहिए। और मुझे डराते हुए बोली कि तुम्हारी नूनी को कुछ हो गया तो?
वह बोली देखें तुम्हारा नूनी... उसका क्या हाल है? वह जब यह बोली तो मुझे शर्म आने लगी और डर भी लगने लगा।
मैं उस समय उस औरत से उसी तरह डरने लगा जैसे बच्चे अपने अभिभावक से डरते हैं। उसके डाँटने पर मैं उसी तरह खड़ा रहा तो उसने मेरे नज़दीक आकर लुंगी को अपने हाथों से हटा दिया, अब मैं उसके सामने बिलकुल नंगा था।
मैं लजा कर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था ना ही हस्तक्षेप कर रहा था। घबराहट के कारण मेरा सामान अब मुड़-कर लटक सा गया था।
कुछ समय मुझे इस तरह नंगा कर निहारने के बाद मन ही मन कुछ इस तरह मुस्कुराकर बोली...।
देखो तुम्हारी नूनी अब भी अपने-आप हरकत कर रही है। वह इस प्रकार बोलने लगी कि मेरी नूनी में तनाव आने लगा कुछ-कुछ कड़ा होने की वजह से वह लम्बा होने लग गया था।
वह बोली–जब मैंने देखा था उस समय तो तुम्हारी नूनी एकदम बड़ी नजर आ रही थी इतना कह हौले से मेरी नूनी के ऊपरी हिस्सो को उसने अपने नाजुक हाथ से स्पर्श किया तो एकदम से मेरी नूनी हरकत में आई और वह नूनी से सनसनाता हुआ नूना बन गया।
आज पहली बार औरत के हाथ के स्पर्श के कारण मेरा नूना एकदम से खड़ा होने लगा। उसी समय मैं ऊपर से नीचे तक गनगना गया आज पहली बार मुझे समझ में आया कि जब कोई औरत तुम्हारे नूने को छूती है तो उसके छूने से कितना मजा आता है। मैं अपराधी की तरह खड़ा होकर उसके सामने कुछ भी नहीं कह रहा था।
मेरे नूने को स्पर्श करते-करते उसने इतना कड़ा कर दिया वह पहले से भी अधिक ऊपर हो गया।
तब वह बोली–सुरेश तुम तो देखने में कम उम्र के लगते हो, पर तुम्हारा नूना तो एक दम भरे पूरे मर्द जैसा है।
क्या तुम रोज हाथ से सहलाते हो मैं शर्म से हां-ना करने लगा।

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