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यात्रा की मस्ती

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1217
आईएसबीएन :1234567890

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मस्तराम को पता चलता है कि यात्रा में भी मस्ती हो सकती है।


पहले दिन की परीक्षा समाप्त होने के थोड़ी देर पहले ही हमारे वयस्क साथी ने अपने चक्कर लगाते हुए मुझसे जब पूछा था कि, "कौन-कौन पसंद आईं?" तब मुझे समझ में आया था कि और लोग तो मुफ्त का माल समझ कर एक से अधिक लड़कियों को अपने ख्यालों में पसंद कर रहे थे। मैं अभी इस हड़बड़ाहट में ही था किस पर अपना रूमाल रख दूँ कि तभी मेरी नजरें हाल में लगभग बीचों बीच हमसे 20 फीट दूर बैठी एक लड़की पर पड़ी, जिसकी नजर भी इत्तफाकन इस समय हमारी ओर ही थी। मैंने राहत लेते हुए अपने वयस्क साथी को कहा था, "हाल में लगभग बीचोंबीच बैठी गोल चेहरे और गोरे रंग वाली जो लड़की दिख रही है, मेरी नजर तो उस पर ही है।" ऐसा लगता था कि जैसे उसे आभास हो गया था कि हम लोग उसके बारे में ही बात कर रहे हैं। शायद इसीलिए उसने एक बार फिर परीक्षा की कापी से अपना सिर उठाकर हमारी ओर फिर देखा। पटेल साहब ने कुछ बेशर्मी से कहा, "लगता है कि आग दोनों ओर लगी हुई है!" उनकी बात सुन कर मैं खोखली हंसी हंस कर चुप रह गया था।   

उसके बाद मैंने उसे देखा तो हर रोज था, लेकिन अब केवल यही याद आ रहा था कि वह रंग में सामान्य लोगों से थोड़ी अधिक गोरी, खुले हुए कंधे तक कटे बालों वाली, पाँच फीट तीन-चार इंच ऊँची और गोल चेहरे की मालकिन थी।
 
अभी थोड़ी देर पहले जब वह बाथरूम के सामने मिली थी, तब तो मैं इतना भौंचक्क रह गया था कि तब, उसे ध्यान से देखने की बात तो तब भी मेरे दिमाग में बिलकुल नहीं आई थी। देखा जाये तो कोई बहुत बड़ी बात भी नहीं थी, मुझे क्या मालूम था कि वह मुझमें दिलचस्पी ले रही थी, या ले भी सकती थी। उसके चेहरे को याद करते हुए मैंने सबसे पहले दायें हाथ की उंगली उसके ओंठों पर रखी और फिर दायें से बायें जाते हुए उसके सुंदर ओठों को अनुभव किया। मुझे ऐसा लगा कि उसके ओठ कुछ कांप रहे थे, जैसे वह अंदर ही अंदर हिल रही हो।

जब नीचे और ऊपर, दोनों ओठों को मैंने अच्छी तरह उंगली के स्पर्श से महसूस कर लिया, तब उसके ओठों को सम्मान देने के लिए आगे झुककर एक हल्का, परंतु पूरे ओठों पर और अत्यंत आत्मीय चुम्बन लिया। एक तरह से मैं अब अपने मन में इन अनुभवों को सहेजता जा रहा था।

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