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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से 2

वयस्क किस्से 2

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1215
आईएसबीएन :1234567890

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मस्तराम के कुछ और किस्से

सुनीता-क्या!
चन्दा- वही, जिसके लिए हम इतने दिन से परेशान थे।
सुनीता-मतलब?
चन्दा-कल मैंने चूहा पकड़ लिया!
सुनीता-क्या? सच्ची! कहाँ? कैसे? कब?
चन्दा-बता दूँ?
सुनीता-नहीं छुपा कर रख। मुझे क्या करना। मैं कौन हूँ जिसे तू बताएगी।
चन्दा-तू तो बुरा मान गई। तुझे नहीं बताऊँगी तो किसको बताऊँगी।
सुनीता-फिर बता!
तब तक उनकी अध्यापिका आती दिखाई दीं। अध्यापिका डाँट कर बोली। "जल्दी जाओ कक्षा में। तुम लोग हर दिन देर करती हो। ऐसे मटकती हुई जाती हो जैसे पैर में पत्थर पड़े हों।"

कक्षा में उनकी मेज कुर्सी पर उनकी विरोधी लड़कियाँ बैठी हुई थी। दोनों को अलग-अलग जगह बैठना पड़ा।
स्कूल की आधी छुट्टी के समय हमेशा की तरह दोनों सहेलियाँ स्कूल की चहारदीवाराी के पास लगे पेड़ों के झुण्ड के पास लगी हुई लोहे की कुर्सियों पर जा बैठीं। रास्ते में जाते हुए चन्दा ने सुनीता से कहा, "देख मैं जो तुझे बताने जा रही हूँ उसे अगर तूने किसी और को बताया तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करूँगी।"

सुनीता-पागल है क्या?
चन्दा-तो अपना दिल संभाल कर सुन। बल्कि दिल तो क्या और भी बहुत कुछ संभाल कर सुन!
सुनीता-क्या बात है बड़े भाव खा रही है। पता तो चले कि तुमने क्या तीर मारा है?
चन्दा ने इधर-उधर देखा और फिर धीमी आवाज में बोली-देख चूहा दूर से कैसा दिखता है, हम दोनो जानती हैं, पर उसको छूने पकड़ने में कितना मजा आता है, यह मुझे कल ही पता लगा।

सुनीता-पर तुझे मिला कहाँ? और एक बात और बता, क्या चूहा बिल में भी गया?
चन्दा-हाँ, वही तो!
सुनीता-चल झूठी।

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