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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से 2

वयस्क किस्से 2

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 1215
आईएसबीएन :1234567890

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मस्तराम के कुछ और किस्से



पिंकी और चन्दा एक ही खाट पर लेटतीं थीं। पिंकी को पता न चले इस ख्याल से चन्दा ने अपने बायें हाथ की उँगलियों को काम पर लगाया। उसकी उँगलियाँ तिकोन की चिरन के ऊपर होती हुई सरकी तो फिर से उसकी हल्की सी आह निकल गई। शाम की कार्यवाही से अब तक उसे सुखभरा दर्द हो रहा था। अजीब बात थी, दर्द भी, खराश भी थी और अच्छा भी लग रहा था। उसकी तिकोन के अंदर से चिकनाई भरे रस की धार फिर बह निकली। उस चिकनाई से उंगली गीली करते हुए उसने तिकोन के मुहाने पर ही चिरन के ऊपरी हिस्से पर जैसी ही अपनी उँगली फिराई तो उसकी झनझनाहट से वह लेटे-लेटे ही थर्रा उठी। जैसे करंट लगा हो। उसने तुरंत अपनी उँगलियाँ हटाई और अपने पूरे तिकोन के ऊपर हथेली ऐसे जमा दी कि जैसे खुद को खुद से ही बचा रही हो। कुछ देर हथेली तिकोने के ऊपर रखकर उसे हिलाए बगैर किसी तरह उसने अपनी साँसों पर काबू किया और उसके बाद एक उंगली तिकोन के मुहाने पर रख कर बहुत आहिस्ता से बिना अपने आप को बताए अंदर डाल दी। इस बार तो पूरी खाट ही हिल गई। क्या मजा आया था!

रात भर वह जागती-सोती रही। यहाँ तक कि सुबह सवेरे उसकी नींद रोज से बहुत जल्दी खुल गई। वह उठकर बाहर बने गुसलखाने में गई और वहाँ दरवाजा बंद करने के बाद बड़े प्यार से अपने को बार-बार छूकर महसूस करती रही। उसका मन किया वह यूँ ही अपने आपको छूती रहे। बल्कि और भी अच्छा हो कि आँटी या किशोर उसे दिन भर और रात भर बस छूते रहें और वह सब करते रहें जो कल कर रहे थे। इन्हीं ख्यालों में खोई हुई वह जल्दी-जल्दी तैयार हुई और फटाफट नाश्ता करके स्कूल को समय से पहले ही चल पड़ी। वह बेसब्री से सुनीता को सारी बात बताना चाहती थी।

सुनीता उसे देखते ही चहक उठी। "क्या हुआ? आज तो तू बहुत खिल रही है। क्या खास बात है!"
चन्दा-मत पूछ कल क्या हुआ!
सुनीता-क्या हुआ, तुझे नया मोबाइल मिल गया क्या?
चन्दा- नहीं मोबाइल तो नहीं मिला, पर उससे भी बड़ी एक चीज मिल गई।

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