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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


विभूति तीन प्रकार की बतायी गयी है- लोकाग्निजनित, वेदाग्निजनित और शिवाग्निजनित। लोकाग्निजनित या लौकिक भस्म को द्रव्यों की शुद्धि के लिये लाकर रखे। मिट्टी, लकड़ी और लोहे के पात्रों की, धान्यों की, तिल आदि द्रव्यों की, वस्त्र आदि की तथा पर्युषित वस्तुओं की भस्म से शुद्धि होती है। कुत्ते आदि से दूषित हुए पात्रों की भी भस्म से ही शुद्धि मानी गयी है। वस्तु- विशेष की शुद्धि के लिये यथायोग्य सजल अथवा निर्जल भस्म का उपयोग करना चाहिये। वेदाग्निजनित जो भस्म है, उसको उन-उन वैदिक कर्मों के अन्त में धारण करना चाहिये। मन्त्र और क्रिया से जनित जो होमकर्म है वह अग्नि में भस्म का रूप धारण करता है। उस भस्म को धारण करने से वह कर्म आत्मा में आरोपित हो जाता है। अघोरमूर्तिधारी शिव का जो अपना मन्त्र है, उसे पढ़कर बेल की लकड़ी को जलाये। उस मन्त्र से अभिमन्त्रित अग्नि को शिवाग्नि कहा गया है। उसके द्वारा जले हुए काष्ठ का जो भस्म है, वह शिवाग्निजनित है। कपिला गाय के गोबर अथवा गायमात्र के गोबर को तथा शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर - इनकी लकड़ियों को शिवाग्नि से जलाये। वह शुद्ध भस्म शिवाग्निजनित माना गया है अथवा कुश की अग्नि में शिवमन्त्र के उच्चारणपूर्वक काष्ठ को जलाये। फिर उस भस्म को कपड़े से अच्छी तरह छानकर नये घड़े में भरकर रख दे। उसे समय-समय पर अपनी कान्ति या शोभा की वृद्धि के लिये धारण करे। ऐसा करनेवाला पुरुष सम्मानित एवं पूजित ह्येता है।

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