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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय १८

बन्धन और मोक्ष का विवेचन, शिवपूजा का उपदेश, लिंग आदि में शिवपूजन का विधान, भस्म के स्वरूप का निरूपण और महत्त्व, शिव एवं गुरु शब्द की व्युत्पत्ति तथा शिव के भस्मधारण का रहस्य

ऋषि बोले-  सर्वज्ञों में श्रेष्ठ सूतजी! बन्धन और मोक्ष का स्वरूप क्या है? यह हमें बताइये।

सूतजीने कहा- महर्षियो! मैं बन्धन और मोक्ष का स्वरूप तथा मोक्ष के उपाय का वर्णन करूँगा। तुमलोग आदरपूर्वक सुनो! जो प्रकृति आदि आठ बन्धनों से बँधा हुआ है वह जीव बद्ध कहलाता है और जो उन आठों बन्धनों से छूटा हुआ है उसे मुक्त कहते हैं। प्रकृति आदि को वशमें कर लेना मोक्ष कहलाता है। बन्धन आगन्तुक है और मोक्ष स्वतःसिद्ध है। बद्ध जीव जब बन्धन से मुक्त हो जाता है तब उसे मुक्तजीव कहते हैं। प्रकृति, बुद्धि (महत्तत्त्व), त्रिगुणात्मक अहंकार और पाँच तन्मात्राएँ - इन्हें ज्ञानी पुरुष प्रकृत्याद्यष्टक मानते हैं। प्रकृति आदि आठ तत्त्वों के समूह से देह की उत्पत्ति हुई है। देह से कर्म उत्पन्न होता है और फिर कर्म से नूतन देह की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार बारंबार जन्म और कर्म होते रहते हैं। शरीर को स्थूल, सूक्ष्म और कारण के भेद से तीन प्रकार का जानना चाहिये। स्थूल शरीर (जाग्रत् अवस्था में) व्यापार करानेवाला, सूक्ष्म शरीर (जाग्रत् और स्वप्न अवस्थाओं में) इन्द्रिय-भोग प्रदान करनेवाला तथा कारण शरीर (सुषुप्तावस्था में) आत्मानन्द की अनुभूति करानेवाला कहा गया है। जीव को उसके प्रारब्ध-कर्मानुसार सुख- दुःख प्राप्त होते हैं। वह अपने पुण्यकर्मों के फलस्वरूप सुख और पाप कर्मों के फलस्वरूप दुःख का उपभोग करता है। अत: कर्मपाश से बँधा हुआ जीव अपने त्रिविध शरीर से होनेवाले शुभाशुभ कर्मों द्वारा सदा चक्र की भांति बारंबार घुमाया जाता है। इस चक्रवत् भ्रमण की निवृत्ति के लिये चक्रकर्ता का स्तवन एवं आराधन करना चाहिये। प्रकृति आदि जो आठ पाश बतलाये गये हैं उनका समुदाय ही महाचक्र है और जो प्रकृति से परे हैं, वे परमात्मा शिव हैं। भगवान् महेश्वर ही प्रकृति आदि महाचक्र के कर्ता हैं; क्योंकि वे प्रकृति से परे हैं। जैसे बकायन नामक वृक्ष का थाला जल को पीता और उगलता है उसी प्रकार शिव प्रकृति आदि को अपने वश में करके उस पर शासन करते हैं। उन्होंने सबको वश में कर लिया है इसीलिये वे शिव कहे गये हैं। शिव ही सर्वज्ञ, परिपूर्ण तथा निःस्पृह हैं। सर्वज्ञता, तृप्ति, अनादि बोध, स्वतन्त्रता, नित्य अलुप्त शक्ति से संयुक्त होना और अपने भीतर अनन्त शक्तियों को धारण करना - महेश्वर के इन छ: प्रकार के मानसिक ऐश्वर्यों को केवल वेद जानता है। अत: भगवान् शिव के अनुग्रह से ही प्रकृति आदि आठों तत्व वश में होते हैं। भगवान् शिव का कृपाप्रसाद प्राप्त करने के लिये उन्हीं का पूजन करना चाहिये।

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