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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

अध्याय ४

चंचुला की प्रार्थना से ब्राह्मण का उसे पूरा शिवपुराण सुनाना और समयानुसार शरीर छोड़कर शिवलोक में जा चंचुला का पार्वतीजी की सखी एवं सुखी होना


ब्राह्मण बोले- नारी! सौभाग्य की बात है कि भगवान् शंकर की कृपा से शिव- पुराण की इस वैराग्ययुक्त कथा को सुनकर तुम्हें समयपर चेत हो गया है। ब्राह्मणपत्नी! तुम डरो मत। भगवान् शिव की शरण में जाओ। शिव की कृपा से सारा पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। मैं तुमसे भगवान् शिव की कीर्तिकथा से युक्त उस परम वस्तु का वर्णन करूँगा, जिससे तुम्हें सदा सुख देनेवाली उत्तम गति प्राप्त होगी। शिव की उत्तम कथा सुनने से ही तुम्हारी बुद्धि इस तरह पश्चात्ताप से युक्त एवं शुद्ध हो गयी है। साथ ही तुम्हारे मन में विषयों के प्रति वैराग्य हो गया है। पश्चात्ताप ही पाप करनेवाले पापियों के लिये सबसे बड़ा प्रायश्चित्त है। सत्पुरुषों ने सबके लिये पश्चात्ताप को ही समस्त पापों का शोधक बताया है पश्चात्ताप से ही पापों की शुद्धि होती है। जो पश्चात्ताप करता है वही वास्तव में पापों का प्रायश्चित्त करता है; क्योंकि सत्पुरुषोंने समस्त पापों की शुद्धि के लिये जैसे प्रायश्चित्त का उपदेश किया है वह सब पश्चात्ताप से सम्पन्न हो जाता है।

पश्चात्तापः पापकृतं पापानां निष्कृतिः परा।
सर्वेषां वर्णितं सद्भिः सर्वपापविशोधनम्।।
पश्चात्तापेनैव शुद्धिः प्रायश्चित्तं करोति सः।
यथोपदिष्टं सद्भिर्हि सर्वपापविशोधनम्।।

(शिवपुराण-माहात्म्य अ० ३ श्लोक ५-६)


जो पुरुष विधिपूर्वक प्रायश्चित्त करके निर्भय हो जाता है, पर अपने कुकर्मके लिये पश्चात्ताप नहीं करता, उसे प्राय: उत्तम गति नहीं प्राप्त होती। परंतु जिसे अपने कुकृत्य पर हार्दिक पश्चात्ताप होता है वह अवश्य उत्तम गति का भागी होता है इसमें संशय नहीं। इस शिव-पुराण की कथा सुनने से जैसी चित्तशुद्धि होती है, वैसी दूसरे उपायों से नहीं होती। जैसे दर्पण साफ करने पर निर्मल हो जाता है उसी प्रकार इस शिवपुराण की कथा से चित्त अत्यन्त शुद्ध हो जाता है - इसमें संशय नहीं है। मनुष्यों के शुद्धचित्त में जगदम्बा पार्वती सहित भगवान् शिव विराजमान रहते हैं। इससे वह विशुद्धात्मा पुरुष श्रीसाम्ब सदाशिव के पद को प्राप्त होता है। इस उत्तम कथा का श्रवण समस्त मनुष्यों के लिये कल्याण का बीज है। अत: यथोचित (शास्त्रोक्त) मार्ग से इसकी आराधना अथवा सेवा करनी चाहिये। यह भवबन्धनरूपी रोग का नाश करनेवाली है। भगवान् शिव की कथा को सुनकर फिर अपने हृदय में उसका मनन एवं निदिध्यासन करना चाहिये। इससे पूर्णतया चित्तशुद्धि हो जाती है। चित्तशुद्धि होने से महेश्वर की भक्ति अपने दोनों पुत्रों  (ज्ञान और वैराग्य के साथ निश्चय ही प्रकट होती है। तत्पश्चात्‌ महेश्वर के अनुग्रह से दिव्य मुक्ति प्राप्त होती है, इसमें संशय नहीं है। जो मुक्ति से वंचित है, उसे पशु समझना चाहिये; क्योंकि उसका चित्त माया के बन्धन में आसक्त है। वह निश्चय ही संसार बन्धन से मुक्त नहीं हो पाता।

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