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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


१. मन्त्रों के दस संस्कार ये हैं- जनन, दीपन, बोधन, ताड़न, अभिषेचन, विमलीकरण, जीवन, तर्पण, गोपन और आप्यायन। इनकी विधि इस प्रकार है -

•    भोजपत्र पर गोरोचन, कुंकुम, चन्दनादि से आत्माभिमुख त्रिकोण लिखे, फिर तीनों कोणों में छ:-छ: समान रेखाएँ खींचे। ऐसा करने पर ४९ त्रिकोण कोष्ठ बनेंगे। उनमें ईशानकोण से मातृकावर्ण लिखकर देवता का आवाहन-पूजन करके मन्त्र का एक-एक वर्ण उच्चारण करके अलग पत्र पर लिखे। ऐसा करने पर  'जनन' नाम का प्रथम संस्कार होगा।

•    हंसमन्त्र का सम्पुट करने से एक हजार जप द्वारा मन्त्र का दूसरा 'दीपन' संस्कार होता है। यथा- हंस: रामाय नम: सोऽहम्।

•    ह्रूँ-बीज-सम्पुटित मन्त्र का पाँच हजार जप करने से 'बोधन' नामक तीसरा संस्कार होता है। यथा- ह्रूँ रामाय नमः ह्रूँ।

•    फट्-समुटित मन्त्र का एक हजार जप करने से 'ताड़न' नामक चतुर्थ संस्कार होता है। यथा- फट् रामाय नम: फट्।

•    भूर्जपत्रपर मन्त्र लिखकर 'रों हंस: ओं' इस मन्त्र से जल को अभिमन्त्रित करे और उस अभिमन्त्रित जल से अश्वत्थपत्रादि द्वारा मन्त्र का अभिषेक करे। ऐसा करनेपर 'अभिषेक' नामक पाँचवाँ संस्कार होता है।

•    'ओं त्रों वषट्' इन वर्णों से सम्पुटित मन्त्र का एक हजार जप करनेसे 'विमलीकरण' नामक छठा संस्कार होता है। यथा- ओं त्रों वषट् रामाय नमः वषट् त्रों ओं।

•    स्वधा-वषट्-सम्पुटित मूलमन्त्र का एक हजार जप करनेसे 'जीवन' नामक सातवाँ संस्कार होता है। यथा- स्वधा वषट् रामाय नम: वषट् स्वधा।

•    दुग्ध, जल एवं घृत के द्वारा मूलमन्त्र से सौ बार तर्पण करना ही 'तर्पण' संस्कार है।

•    ह्रीं-बीज-सम्पुटित एक हजार जप करने से 'गोपन' नामक नवम् संस्कार होता है। यथा- ह्रीं रामाय नमः ह्रीं।

•    ह्रौं-बीज-सम्पुटित एक हजार जप करने से 'आप्यायन' नामक दसवाँ संस्कार होता है। यथा- ह्रौं रामाय नम: ह्रौं।

इस प्रकार संस्कृत किया हुआ मन्त्र शीघ्र सिद्धिप्रद होता है।

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