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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


वे पूजक पर कृपा करके उसे अपना आन्तरिक ऐश्वर्य प्रदान करते हैं। अत: मुनीश्वरो! आन्तरिक आनन्द की प्राप्ति के लिये, शिवलिंग को माता-पिता का स्वरूप मानकर उसकी पूजा करनी चाहिये। भर्ग (शिव) पुरुषरूप है और भर्गा (शिवा अथवा शक्ति) प्रकृति कहलाती है। अव्यक्त आन्तरिक अधिष्ठानरूप गर्भ को पुरुष कहते हैं और सुव्यक्त आन्तरिक अधिष्ठानभूत गर्भ को प्रकृति। पुरुष आदिगर्भ है, वह प्रकृतिरूप गर्भ से युक्त होने के कारण गर्भवान् है; क्योंकि वही प्रकृति का जनक है। प्रकृति में जो पुरुष का संयोग होता है, यही पुरुष से उसका प्रथम जन्म कहलाता है। अव्यक्त प्रकृति से महत्तत्त्वादि के क्रम से जो जगत्‌ का व्यक्त होना है, यही उस प्रकृति का द्वितीय जन्म कहलाता है। जीव पुरुष से ही बारंबार जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता है। माया द्वारा अन्य रूप से प्रकट किया जाना ही उसका जन्म कहलाता है, जीव का शरीर जन्मकाल से ही जीर्ण (छ: भावविकारों से युक्त) होने लगता है, इसीलिये उसे 'जीव' संज्ञा दी गयी है। जो जन्म लेता और विविध पाशों द्वारा तनाव (बन्धन) में पड़ता है, उसका नाम जीव है; जन्म और बन्धन जीव-शब्द का अर्थ ही है। अत: जन्म-मृत्यु रूपी बन्धन की निवृत्ति के लिये जन्म के अधिष्ठानभूत मातृ-पितृस्वरूप शिवलिंग का पूजन करना चाहिये।

गाय का दूध, गाय का दही और गाय का घी - इन तीनों को पूजन के लिये शहद और शक्कर के साथ पृथकृ-पृथक् भी रखे और इन सबको मिलाकर सम्मिलितरूप से पंचामृत भी तैयार कर ले। (इनके द्वारा शिवलिंगका अभिषेक एवं स्नान कराये), फिर गाय के दूध और अन्न के मेल से नैवेद्य तैयार करके प्रणव मन्त्र के उच्चारणपूर्वक उसे भगवान् शिव को अर्पित करे। सम्पूर्ण प्रणव को ध्वनिलिंग कहते हैं। स्वयम्भूलिंग नादस्वरूप होने के कारण नादलिंग कहा गया है। यन्त्र या अर्घा बिन्दुस्वरूप होने के कारण बिन्दु- लिंग के रूप में विख्यात है। उसमें अचल- रूप से प्रतिष्ठित जो शिवलिंग है वह मकार-स्वरूप है, इसलिये मकारलिंग कहलाता है। सवारी निकालने आदि के लिये जो चरलिंग होता है वह उकार स्वरूप होने से उकारलिंग कहा गया है तथा पूजा की दीक्षा देनेवाले जो गुरु या आचार्य हैं, उनका विग्रह अकार का प्रतीक होने से अकारलिंग माना गया है। इस प्रकार अकार, उकार, मकार, बिन्दु, नाद और ध्वनि के रूप में लिंग के छ: भेद हैं। इन छहों लिंगों की नित्य पूजा करने से साधक जीवनमुक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है।

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