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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


इस तरह दुराचार में डूबे हुए उन मूढ़चित्तवाले पति-पत्नी का बहुत-सा समय व्यर्थ बीत गया। तदनन्तर शूद्रजातीय वेश्या का पति बना हुआ वह दूषित बुद्धिवाला दुष्ट ब्राह्मण बिन्दुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो नरक में जा पड़ा। बहुत दिनों तक नरक के दुःख भोगकर वह मूढ़-बुद्धि पापी विन्ध्यपर्वतपर भयंकर पिशाच हुआ। इधर, उस दुराचारी पति बिन्दुग के मर जाने पर वह मूढ़हृदया चंचुला बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर में ही रही। एक दिन दैवयोग से किसी पुण्य पर्व के आनेपर वह स्त्री भाई-बन्धुओं के साथ गोकर्ण-क्षेत्र में गयी। तीर्थयात्रियों के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तीर्थ के जल में स्नान किया। फिर वह साधारणतया (मेला देखने की दृष्टि से) बन्धुजनों के साथ यत्र-तत्र घूमने लगी। घूमती-घामती किसी देवमन्दिर में गयी और वहाँ उसने एक दैवज्ञ ब्राह्मण के मुख से भगवान् शिव की परम पवित्र एवं मंगलकारिणी उत्तम पौराणिक कथा सुनी। कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे कि 'जो स्त्रियाँ परपुरुषों के साथ व्यभिचार करती हैं, वे मरने के बाद जब यमलोक में जाती हैं, तब यमराज के दूत उनकी योनि में तपे हुए लोहे का परिघ डालते हैं।' पौराणिक ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढ़ाने वाली कथा सुनकर चंचुला भय से व्याकुल हो वहाँ काँपने लगी। जब कथा समाप्त हुई और सुननेवाले सब लोग वहाँ से बाहर चले गये, तब वह भयभीत नारी एकान्त में शिवपुराण की कथा बाँचनेवाले उन ब्राह्मण देवता से बोली।

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