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गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण

शिवपुराण

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1190
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...


गायत्री अपने गायक का पतन से त्राण करती है; इसीलिये वह 'गायत्री' कहलाती है। जैसे इस लोक में जो धनहीन है वह दूसरे को धन नहीं देता - जो यहाँ धनवान् है वही दूसरे को धन दे सकता है, उसी तरह जो स्वयं शुद्ध और पवित्रात्मा है, वही दूसरे मनुष्यों का त्राण या उद्धार कर सकता है। जो गायत्री का जप करके शुद्ध हो गया है वही शुद्ध ब्राह्मण कहलाता है। इसलिये दान, जप, होम और पूजा सभी कर्मों के लिये वही शुद्ध पात्र है। ऐसा ब्राह्मण ही दान तथा रक्षा करने की पात्रता रखता है।

स्त्री हो या पुरुष-जो भी भूखा हो, वही अन्नदान का पात्र है। जिसको जिस वस्तु की इच्छा हो, उसे वह वस्तु बिना माँगे ही दे दी जाय तो दाता को उस दान का पूरा-पूरा फल प्राप्त होता है, ऐसी महर्षियों की मान्यता है। जो सवाल या याचना करने के बाद दिया गया हो, वह दान आधा ही फल देनेवाला बताया गया है। अपने सेवक को दिया हुआ दान एक चौथाई फल देनेवाला होता है। विप्रवरो! जो जातिमात्र से ब्राह्मण है और दीनतापूर्ण वृत्ति से जीवन बिताता है, उसे दिया हुआ धन का दान दाता को इस भूतल पर दस वर्षों तक भोग प्रदान करनेवाला होता है। वही दान यदि वेदवेत्ता ब्राह्मण को दिया जाय तो वह स्वर्गलोक में देवताओं के वर्ष से दस वर्षो तक दिव्य भोग देनेवाला होता है। शिल और उच्छवृत्ति से (कोशकार कहते हैं - 'उच्छ कणश आदान कणिशाद्यर्जन शिलम्।' अर्थात् खेत कट जाने या बाजार उठ यानेपर वहीं बिखरे हुए अन्न के एक-एक कण को चुनना और उससे जीविका चलाना 'उच्छ' वृत्ति है तथा खेत की फसल कट जानेपर वहाँ पडी गेहूँ आदि की बालें बीनना 'शिला' कहा है और उससे जीविका चलाना 'शिला' वृत्ति है ) लाया हुआ और गुरुदक्षिणा में प्राप्त हुआ अन्न-धन शुद्ध द्रव्य कहलाता है। उसका दान दाता को पूर्ण फल देनेवाला बताया गया है। क्षत्रियों का शौर्यसे कमाया हुआ, वैश्यों का व्यापार से आया हुआ और शूद्रों का सेवावृत्ति से प्राप्त किया हुआ धन भी उत्तम द्रव्य कहलाता है। धर्म की इच्छा रखनेवाली स्त्रियों को जो धन पिता एवं पति से मिला हुआ हो, उनके लिये वह उत्तम द्रव्य है।

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