गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
स्थावर-जंगम सभी जीवों को यत्नपूर्वक संतुष्ट करके एक गड्ढे में सुवर्ण तथा नौ प्रकार के रत्न भरकर सद्योजातादि वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करके परम कल्याणकारी महादेवजी का ध्यान करे। तत्पश्चात् नादघोष से युक्त महामन्त्र ओंकार (ॐ) का उच्चारण करके उक्त गड्ढे में शिवलिंग की स्थापना करके उसे पीठ से संयुक्त करे। इस प्रकार पीठयुक्त लिंग की स्थापना करके उसे नित्य-लेप (दीर्घकालतक टिके रहने वाले मसाले) से जोड़कर स्थिर करे। इसी प्रकार वहाँ परम सुन्दर वेर (मूर्ति) की भी स्थापना करनी चाहिये। सारांश यह कि भूमि-संस्कार आदि की सारी विधि जैसी लिंगप्रतिष्ठा के लिये कही गयी है, वैसी ही वेर (मूर्ति) प्रतिष्ठा के लिये भी समझनी चाहिये। अन्तर इतना ही है कि लिंग-प्रतिष्ठा के लिये प्रणव मन्त्र के उच्चारण का विधान है परन्तु वेर की प्रतिष्ठा पंचाक्षर-मन्त्र से करनी चाहिये। जहाँ लिंग की प्रतिष्ठा हुई है वहाँ भी उत्सव के लिये बाहर सवारी निकालने आदि के निमित्त वेर (मूर्ति) को रखना आवश्यक है। वेर को बाहर से भी लिया जा सकता है। उसे गुरुजनों से ग्रहण करे। बाह्य वेर वही लेनेयोग्य है, जो साधु पुरुषों द्वारा पूजित हो। इस प्रकार लिंग में और वेर में भी की हुई महादेवजी की पूजा शिवपद प्रदान करनेवाली होती है। स्थावर और जंगम के भेद से लिंग भी दो प्रकार का कहा गया है। वृक्ष, लता आदि को स्थावर लिंग कहते हैं और कृमि-कीट आदि को जंगम लिंग। स्थावर लिंग की सींचने आदि के द्वारा सेवा करनी चाहिये और जंगम लिंग को आहार एवं जल आदि देकर तृप्त करना उचित है। उन स्थावर-जंगम जीवों को सुख पहुँचाने में अनुरक्त होना भगवान् शिव का पूजन है, ऐसा विद्वान् पुरुष मानते हैं। (यों चराचर जीवों को ही भगवान् शंकर के प्रतीक मानकर उनका पूजन करना चाहिये।)
इस तरह महालिंग की स्थापना करके विविध उपचारों द्वारा उसका पूजन करे। अपनी शक्ति के अनुसार नित्य पूजा करनी चाहिये तथा देवालय के पास ध्वजारोपण आदि करना चाहिये। शिवलिंग साक्षात् शिव का पद प्रदान करनेवाला है। अथवा चरलिंग में षोडशोपचारों द्वारा यथोचित रीति से क्रमश: पूजन करे। यह पूजन भी शिवपद प्रदान करनेवाला है।
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