गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
लिंग की लम्बाई निर्माणकर्ता या स्थापना करनेवाले यजमान के बारह अंगुलके बराबर होनी चाहिये। ऐसे ही शिवलिंग को उत्तम कहा गया है। इससे कम लम्बाई हो तो फल में कमी आ जाती है अधिक हो तो कोई दोष की बात नहीं है। चरलिंग में भी वैसा ही नियम है। उसकी लम्बाई कम-से-कम कर्ता के एक अंगुल के बराबर होनी चाहिये। उससे छोटा होने पर अल्प फल मिलता है, किंतु उससे अधिक होना दोष की बात नहीं है। यजमान को चाहिये कि वह पहले शिल्पशास्त्र के अनुसार एक विमान या देवालय बनवाये, जो देवगणों की मूर्तियों से अलंकृत हो। उसका गर्भगृह बहुत ही सुन्दर, सुदृढ़ और दर्पण के समान स्वच्छ हो। उसे नौ प्रकार के रत्नों से विभ्रूषित किया गया हो। उसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में दो मुख्य द्वार हों। जहाँ शिवलिंग की स्थापना करनी हो, उस स्थान के गर्त में नीलम, लाल वैदूर्य, श्याम, मरकत, मोती, मूँगा, गोमेद और हीरा - इन नौ रत्नों को तथा अन्य महत्वपूर्ण द्रव्यों को वैदिक मन्त्रों के साथ छोड़े। सद्योजात आदि पाँच वैदिक मन्त्रों* द्वारा शिवलिंग का पाँच स्थानों में क्रमश: पूजन करके अग्नि में हविष्य की अनेक आहुतियाँ दे और परिवार सहित मेरी पूजा करके गुरुस्वरूप आचार्य को धन से तथा भाई-बन्धुओं को मनचाही वस्तुओं से संतुष्ट करे। याचकों को जड़ (सुवर्ण, गृह एवं भू-सम्पत्ति) तथा चेतन (गौ आदि) वैभव प्रदान करे।
सद्योजात आदि पाँच वैदिक मन्त्र-
ॐसद्योजात प्रपद्यामि सद्योजाताय वै नमो नमः।
भवे भवेनातिभवे भवस्व मां भवोद्भवाय नमः।।
ॐ वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमो बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मथाय नमः।
ॐ अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः सर्वेभ्यः सर्वशर्वेभ्यो नमस्तेऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः।
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।
ॐ ईशानः सर्वविद्यानां ईश्वरः सर्वभूतानां ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मेऽस्तु सदाशिवोम्।
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