गीता प्रेस, गोरखपुर >> शिवपुराण शिवपुराणहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
अथवा एकाग्रचित्त हो सोलह स्थान में ही त्रिपुण्ड्र धारण करे। मस्तक, ललाट, कण्ठ, दोनों कंधों, दोनों भुजाओं, दोनों कोहनियों तथा दोनों कलाइयों में, हृदय में, नाभि में, दोनों पसलियों में तथा पृष्ठभाग में त्रिपुण्ड्र लगाकर वहाँ दोनों अश्विनीकुमारों का शिव, शक्ति, रुद्र, ईश तथा नारद का और वामा आदि नौ शक्तियों का पूजन करे। ये सब मिलकर सोलह देवताहैं। अश्विनीकुमार दो कहे गये हैं। नासत्य और दस्र अथवा मस्तक, केश, दोनों कान, मुख, दोनों भुजा, हृदय, नाभि, दोनों ऊरु, दोनों जानु, दोनों पैर और पृष्ठभाग - इन सोलह स्थानों में सोलह त्रिपुण्ड्र का न्यास करे। मस्तक में शिव, केश में चन्द्रमा, दोनों कानों में रुद्र और ब्रह्मा, मुख में विघ्नराज गणेश, दोनों भुजाओं में विष्णु और लक्ष्मी, हृदय में शम्भु, नाभि में प्रजापति, दोनों ऊरुओं में नाग और नागकन्याएँ, दोनों घुटनों में ऋषिकन्याएँ, दोनों पैरों में समुद्र तथा विशाल पृष्ठभाग में सम्पूर्ण तीर्थ देवतारूप से विराजमान हैं। इस प्रकार सोलह स्थानों का परिचय दिया गया। अब आठ स्थान बताये जाते हैं। गुह्य स्थान, ललाट, परम उत्तम कर्णयुगल, दोनों कंधे, हृदय और नाभि - ये आठ स्थान हैं। इनमें ब्रह्मा तथा सप्तर्षि - ये आठ देवता बताये गये हैं। मुनीश्वरो! भस्म के स्थान को जाननेवाले विद्वानों ने इस तरह आठ स्थानों का परिचय दिया है अथवा मस्तक, दोनों भुजाएँ, हृदय और नाभि - इन पाँच स्थानों को भस्मवेत्ता पुरुषों ने भस्म धारण के योग्य बताया है। यथासम्भव देश, काल आदि की अपेक्षा रखते हुए उद्धूलन (भस्म) को अभिमन्त्रित करना और जल में मिलाना आदि कार्य करे। यदि उद्धूलन में भी असमर्थ हो तो त्रिपुण्ड्र आदि लगाये। त्रिनेत्रधारी, तीनों गुणों के आधार तथा तीनों देवताओं के जनक भगवान् शिव का स्मरण करते हुए 'नम : शिवाय' कहकर ललाट में त्रिपुण्ड्र लगाये। 'ईशाभ्यां नम ' ऐसा कहकर दोनों पार्श्वभागों में त्रिपुण्ड्र धारण करे। 'बीजाभ्यां नम:' यह बोलकर दोनों कलाइयों में भस्म लगावे। 'पितृभ्यां नम:' कहकर नीचे के अंगमें, 'उमेशाभ्यां नम:' कहकर ऊपर के अंग में तथा 'भीमाय नम:' कहकर पीठ में और सिर के पिछले भाग में त्रिपुण्ड्र लगाना चाहिये।
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